उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिर हंगामा मच गया है। समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता शिवपाल यादव और बुलंदशहर की जिलाधिकारी श्रुति के बीच का विवाद अब सुर्खियों में है। बात इतनी बढ़ गई कि डीएम को आखिरकार माफी मांगनी पड़ी। आइए, जानते हैं क्या है पूरा मामला और कैसे सुलझा यह विवाद।
फोन की घंटी बजी, लेकिन DM ने किया नजरअंदाजशिवपाल यादव, जो समाजवादी पार्टी के महासचिव और यूपी की सियासत के बड़े चेहरे हैं, ने एक कार्यकर्ता के काम के लिए बुलंदशहर की डीएम श्रुति को फोन किया। बताया जाता है कि उन्होंने करीब 20 से 25 बार कॉल की, लेकिन डीएम साहिबा ने एक बार भी फोन नहीं उठाया। कई बार उनके निजी सहायक ने फोन उठाया, लेकिन शिवपाल की बात डीएम तक नहीं पहुंची। शिवपाल ने डीएम के निजी नंबर पर भी कॉल की, पर जवाब नहीं मिला। हद तो तब हो गई जब सपा के बुलंदशहर जिलाध्यक्ष मतलूब अली खुद शिवपाल का संदेश लेकर डीएम ऑफिस पहुंचे, लेकिन उन्हें भी बिना सुनवाई के वापस लौटा दिया गया। इस अनदेखी से शिवपाल का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया।
विधानसभा अध्यक्ष तक पहुंचा मामलाशिवपाल यादव जैसे वरिष्ठ नेता को इस तरह नजरअंदाज करना डीएम श्रुति के लिए भारी पड़ गया। गुस्साए शिवपाल ने सीधे विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना से इसकी शिकायत कर दी। उन्होंने इसे एक विधायक के विशेषाधिकार का हनन बताया और मामले को विधानसभा की समिति के पास भेजने की मांग की। उनकी शिकायत पर तुरंत एक्शन हुआ और डीएम श्रुति को नोटिस जारी कर दिया गया। इस नोटिस ने लखनऊ से लेकर बुलंदशहर तक प्रशासनिक गलियारों में हड़कंप मचा दिया। शासन के बड़े अधिकारी भी हरकत में आ गए और मामले को जल्द सुलझाने की कोशिशें शुरू हो गईं।
डीएम की माफी, शिवपाल का बड़प्पननोटिस मिलते ही डीएम श्रुति को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने फौरन शिवपाल यादव से संपर्क किया और पूरे मामले के लिए माफी मांगी। डीएम ने अपनी सफाई में कहा कि उनके निजी सहायक नितेश कुमार रस्तोगी ने उन्हें शिवपाल के फोन की जानकारी ही नहीं दी। इतना ही नहीं, डीएम ने अपने उस पीआरओ को तुरंत हटा भी दिया। दूसरी तरफ, शिवपाल ने भी बड़ा दिल दिखाते हुए उनकी माफी स्वीकार कर ली। उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर बताया कि वह डीएम की सफाई से संतुष्ट हैं और अब कोई कार्रवाई नहीं चाहते। इसके बाद इस मामले को बंद कर दिया गया। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर शिवपाल अड़ जाते, तो डीएम को विधानसभा में पेश होना पड़ सकता था।
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