– हाईकोर्ट ने सरकार का तर्क माना, नहीं हो सकती अधीनस्थ अदालत में सिविल दावों पर सुनवाई
– चार दावों में से तीन में उपमुख्यमंत्री दीयाकुमारी पक्षकार, चारों दावों को सरकार ने दी थी चुनौती
जयपुर, 20 अप्रैल . हाईकोर्ट ने जयपुर के पुराने विधानसभा भवन (टाऊन हॉल), पुराना पुलिस मुख्यालय व पुराना होमगार्ड महानिदेशालय तथा जलेब चौक स्थित पुराने लेखाकार कार्यालय परिसर की करीब ढाई हजार करोड़ रुपए की सम्पत्ति को सरकारी सम्पत्ति मानते हुए इन पर पूर्व राजपरिवार के दावाें को खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर कोई सिविल न्यायालय सुनवाई ही नहीं कर सकता.
न्यायाधीश अशोक कुमार जैन ने राज्य सरकार की चार रिवीजन याचिकाओं को मंजूर करते हुए यह आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि ये संपत्तियां वर्ष 1949 में जयपुर रियासत और भारत सरकार के बीच हुए समझौते का हिस्सा हैं, जिनका उपयोग सरकारी प्रयोजन के लिए किया जाना था और इस संदर्भ में कोई भी सिविल वाद संविधान के अनुच्छेद 363 के तहत न्यायालय की समीक्षा से बाहर है. जयपुर के पूर्व राजपरिवार व राज्य सरकार के बीच वर्षों से चल रहे चर्चित संपत्ति विवाद पर यह फ़ैसला सुनाया गया. यह सभी सम्पत्तियां वर्तमान में सरकार के कब्जे में हैं. अतिरिक्त महाधिवक्ता भरत व्यास ने कोर्ट से कहा कि सरकार को यह सम्पत्ति कोवेनेंट से मिली हैं, न की लाइसेंस के जरिए. संविधान के अनुसार इन सम्पत्तियों के स्वामित्व को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती. कोवेनेंट में टाउन हॉल प्रशासनिक कार्य के लिए सरकार को दिया, न कि सिर्फ विधानसभा के लिए. कोवेनेंट के समय यहां विधानसभा अस्तित्व में नहीं थी. सरकार इनका कोई भी उपयोग करने के लिए स्वतंत्र हैं. इन चार याचिकाओं में सिटी पैलेस स्थित महाराजा सवाई मानसिंह-द्वितीय म्यूजियम ट्रस्ट, पूर्व राजपरिवार की सदस्य पद्मिनी देवी, दीयाकुमारी और पद्मनाभ सिंह पक्षकार थे.
पूर्व राजपरिवार ओर से दावों में शहर की अधीनस्थ अदालत से आग्रह किया गया था कि चारों सम्पत्तियों पर पुनः दिलाया जाए और इनका मुआवज़ा दिलाया जाए. दावे में कहा गया था कि यह सम्पत्तियां सरकार को उसके उपयोग के लिए लाइसेंस पर दी गई थी, जो सरकार के उपयोग के लिए दी गई थी और उसके रखरखाव की जिम्मेदारी भी सरकार को ही दी गई. जिस कार्य के लिए यह सम्पत्तियां दी गई थी, अब सरकार को उन कार्यों के लिए इनकी जरूरत नहीं रही है. उद्देश्य पूरा होने के कारण अब इन्हें वापस दिलाया जाए. सरकार ने एडीजे कोर्ट में लंबित दावे को चुनौती दी थी.
हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि संविधान के अंतर्गत कोवेनेंट में किए गए समझौते या संधि से उत्पन्न विवाद को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती. राज्य सरकार को इनका उपयोग केवल सरकारी कार्यों के लिए करना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पूर्व राजपरिवार इनका पुनः अधिकार या मुआवज़ा मांग सकता है. यह संपत्तियाँ राज्य की हैं, किसी भी व्यक्तिगत लाभ या व्यावसायिक उपयोग के लिए सरकार या पूर्व राजपरिवार द्वारा हस्तांतरित नहीं की जा सकतीं.
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