•सूरत में 100 से अधिक बैंक खाते खोले, 6 माह में 8.54 करोड़ की कमाई
•क्यूबा से कमांड और कमीशन का खेल, ईडी-डीआरआई करेगी जांच
सूरत, 28 मई . सूरत पुलिस ने एक मोपेड रोककर 200 करोड़ के अंतरराष्ट्रीय साइबर फ्रॉड का पर्दाफाश किया है. पिछले 9 महीनों से कमीशन की लालच देकर दस्तावेज़ जमा कराए और सूरत में 100 से अधिक फर्जी बैंक खाते खोले गए. यह खेल यहीं नहीं रुका, केवल 6 महीनों के कम समय में 8.54 करोड़ की कमाई की गई. पुलिस के अनुसार जांच में सामने आया है कि क्यूबा से कमांड मिलती थी और कमीशन का खेल चलता था. यह रैकेट इतना बड़ा है कि इस मामले में एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) और डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (डीआरआई) की भी एंट्री हो गई है.
डीसीपी भगिरथ गढ़वी के अनुसार अब तक पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया है, लेकिन मुख्य आरोपित दिव्येश पुलिस की पकड़ से दूर है. पुलिस ने कुछ महत्वपूर्ण तकनीकी फॉरेंसिक डेटा के आधार पर और आरोपितों तक पहुंचने की तैयारी कर ली है. लैपटॉप से मिले डेटा में 100 से अधिक बैंक खातों का खुलासा हुआ है. गढ़वी के अनुसार उधना पुलिस सड़क पर वाहन जांच कर रही थी, तभी रोहन नामक व्यक्ति को मोपेड के साथ रोका गया. मोपेड की डिक्की जांचने पर उसमें संदिग्ध दस्तावेज और मुहर मिले. पूछताछ में रोहन ने स्वीकार किया कि सरथाणा के मित खोखर ने इस सामग्री को पांडेसरा में किसी को देने के लिए भेजा था. पुलिस ने तुरंत मित खोखर को गिरफ्तार किया और पूछताछ करने पर पता चला कि उसने गोपीनाथनगर के किरात विनोद जादवाणी के साथ मिलकर कई लोगों से कमीशन की लालच में दस्तावेज जमा कराए थे और उनके आधार पर करंट अकाउंट खुलवाए थे. मित की ऑफिस की जांच में कई गैर-कानूनी दस्तावेज मिले और वहां से किरात जादवाणी तक के रैकेट का पता चला. किरात के ऑफिस से 5 लैपटॉप, 3.50 लाख नकद, 35 पासबुक, एटीएम कार्ड और पैसे गिनने की मशीन बरामद हुए.
पुलिस के अनुसार ये दोनों आरोपित देश में बड़े पैमाने पर साइबर फ्रॉड चला रहे थे. अब तक करीब 100 बैंक खातों से लगभग 200 करोड़ का रैकेट चल रहा था. आरोपित दिव्येश के साथ मिलकर ये दोनों साइबर फ्रॉड की घटनाओं को अंजाम दे रहे थे, हालांकि दिव्येश अभी पुलिस की पकड़ से दूर है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देश में साइबर फ्रॉड के लिए जो 100 बैंक खाते इस्तेमाल हो रहे थे, उन सभी को ये तीनों ऑपरेट कर रहे थे, इसके लिए उन्हें क्यूबा से ‘रिच पे’ नाम के टेलीग्राम अकाउंट से कमांड मिलती थी. सभी बैंक खाते करंट अकाउंट थे और कमीशन पर इन्हीं खातों से साइबर फ्रॉड के पैसे ट्रांसफर किए जाते थे.
जानकारी के अनुसार आरोपित पहले दिल्ली के विनीत प्रसाद नामक व्यक्ति के साथ काम करते थे, जिनका क्रिप्टोकरेंसी का कारोबार था. बाद में ये आरोपित सीधे “रिच पे” से जुड़े. आरोपित 8 महीने से रिच पे के संपर्क में थे और साइबर फ्रॉड के लिए एक-दूसरे को कमांड देते थे.
आरोपितों ने अपने नेटवर्क के जरिए केवल छह महीनों में 10 लाख यूएसडीटी (अमेरिकी डॉलर से जुड़ी क्रिप्टोकरेंसी) यानी लगभग 8.54 करोड़ की कमाई की थी. उन्होंने सूरत के 100 से अधिक बैंक खातों का इस्तेमाल किया, जिनमें से 35 खातों में देश के विभिन्न राज्यों से साइबर फ्रॉड की शिकायतें दर्ज हो चुकी हैं. एक चौंकाने वाली जानकारी के अनुसार, केवल एक बैंक खाते में तीन दिनों में 42 करोड़ के ट्रांजेक्शन हुए थे.
पुलिस के अनुसार आरोपितों ने फर्जी प्रोफाइल बनाकर फर्जी जीएसटी नंबर हासिल किया और उसके आधार पर फर्जी टेक्सटाइल कंपनियों के नाम पर करंट अकाउंट खोलवाए थे. इन खातों से करोड़ों के लेनदेन किए गए. पुलिस को आशंका है कि कुछ खाते चीन के बैंक से भी जुड़े हो सकते हैं, जिसके आधार पर उधना पुलिस ने अब अंतरराष्ट्रीय कनेक्शनों की जांच शुरू कर दी है. जब भी देश में कोई साइबर फ्रॉड होता है, तो वह पैसा एक या दो मुख्य खातों में जमा होता है और वहां से तुरंत ही कई खातों में ट्रांसफर कर दिया जाता है. इस पैसे की सारी जानकारी क्यूबा भेजी जाती थी और इसका उपयोग “रेजर एक्स” नाम की एप्लिकेशन के जरिए किया जाता था. आरोपितों को कमीशन रुपये में नहीं, बल्कि क्रिप्टोकरेंसी यूएसडीटी में दिया जाता था. हर ट्रांजेक्शन के बाद सीनियर सदस्यों को यूएसडीटी में कमीशन ट्रांसफर किया जाता था, ताकि वे किसी भी देश की मौद्रिक प्रणाली की पकड़ से बच सकें.
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/ बिनोद पाण्डेय
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