-कोर्ट ने कहा, विभागीय कार्रवाई करना जरूरी -जेब में हाथ डालकर पैसे देने का वीडियो हुआ था जारी
प्रयागराज, 24 मई . इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि उप्र अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दण्ड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम- 8 (2) (बी) के प्राविधानों के अन्तर्गत पर्याप्त साक्ष्य होने पर भी बगैर विभागीय कार्यवाही के बर्खास्तगी करना अवैध है.
कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना नियम तथा कानून के विरूद्ध है. यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार ने वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं अतिप्रिया गौतम की बहस सुनकर पारित किया है.
मामले के अनुसार दरोगा प्रदीप कुमार गौतम, चौकी इंचार्ज, गोलचक्कर, थाना फेस-1, नोएडा, गौतमबुद्धनगर में उपनिरीक्षक के पद पर कार्यरत था. याची पर यह आरोप है कि सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा था, जिसके अवलोकन से पाया गया कि वायरल वीडियो में एक व्यक्ति अपनी जेब में हाथ डालता है और पास में खड़े उपनिरीक्षक प्रदीप कुमार गौतम चौकी प्रभारी गोलचक्कर, थाना फेस-1, नोएडा को कुछ रूपये पकड़ाता है.
आरोप लगाया गया है कि उक्त व्यक्ति द्वारा चौकी प्रभारी को रिश्वत दी जा रही है. कहा गया कि दरोगा का यह कृत्य उप्र सरकारी सेवक आचरण नियमावली के प्रतिकूल है, जिससे पुलिस विभाग की छवि धूमिल हुई है. वीडियो के अवलोकन से प्रथम दृष्टया अपराध कारित होना पाये जाने के फलस्वरूप उक्त प्रकरण में 05 अप्रैल 2005 को दरोगा के विरूद्ध थाना फेस-1, नोएडा में धारा 7/13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अभियोग पंजीकृत कराया गया.
याची के ऊपर यह भी आरोप था कि वायरल वीडियो के अवलोकन से याची द्वारा घूस लेना स्वतः स्पष्ट हो रहा है एवं दरोगा के विरूद्ध पंजीकृत आपराधिक अभियोग गम्भीर अपराध की श्रेणी में आता है. अभियोग की विवेचना प्रचलित है तथा दरोगा प्रदीप कुमार गौतम द्वारा कर्तव्य पालन में घोर लापरवाही बरतते हुए गैर जिम्मेदारीपूर्ण, स्वेच्छाचारिता एवं अनुशासनहीनता के साथ-साथ पुलिस जैसे अनुशासित विभाग की छवि को धूमिल की गयी है.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि पुलिस कर्मी की बर्खास्तगी बगैर विभागीय कार्यवाही के अवैध है. उप्र अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दण्ड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम-8 (2)(बी) के प्रावधानों के अन्तर्गत पर्याप्त साक्ष्य के आधार होने पर भी बगैर स्पष्ट कारण बताये कि क्यों विभागीय कार्यवाही नहीं की जा सकती, बर्खास्त करना नियम एवं कानून के विरूद्ध है.
याचिका में कहा गया है कि याची के ऊपर बर्खास्तगी आदेश में जो आरोप लगाये गये है वह बिल्कुल असत्य एवं निराधार है एवं याची को साजिशन अभियुक्त द्वारा षडयंत्र कर झूठा फंसाया गया है, जबकि याची ने रिश्वत के एवज में कोई भी पैसा नहीं लिया है और न ही याची के पास से कोई रिकवरी हुई है.
याची के वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम का कहना था कि उक्त प्रकरण में बगैर विभागीय कार्यवाही किये हुए एवं बगैर नोटिस तथा सुनवाई का अवसर प्रदान किए हुए याची को सेवा से पदच्युत किया गया है, जो कि विधि की व्यवस्था के विरूद्ध है.
हाईकोर्ट ने अपर पुलिस आयुक्त, मुख्यालय गौतमबुद्धनगर द्वारा दरोगा के विरूद्ध पारित बर्खास्तगी आदेश 05 अप्रैल 2025 को रद्द कर दिया एवं याची को बहाल करने का आदेश पारित किया है.
/ रामानंद पांडे
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