उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में पिछले शुक्रवार को एक ऐसा मामला सामने आया जिसने सबको चौंका दिया। दरअसल, यूपीएससी की तैयारी कर रहा एक छात्र अंदर से खुद को लड़की जैसा महसूस करता था, लेकिन परिवार का इकलौता बेटा होने के कारण वह यह बात अपने माता-पिता को कभी नहीं बता पाया। इसके बाद उसने यूट्यूब पर लिंग परिवर्तन का एक वीडियो देखा और लड़की बनने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी। दरअसल, प्रयागराज में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी कर रहा एक युवक लड़की बनना चाहता था और इसके लिए उसने खुद को एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगाया और सर्जिकल ब्लेड से प्राइवेट पार्ट काट लिया। हालत बिगड़ने पर मकान मालिक को बताया गया, जिसके बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया।
पूछताछ में उसने बताया कि जब वह 14 साल का था, तब उसे लगने लगा था कि वह लड़का नहीं, बल्कि लड़की है। काफी समय तक वह यूट्यूब पर लिंग परिवर्तन से जुड़े वीडियो देखता रहा, जो उसके लिए जानलेवा साबित हुए। छात्र ने कटरा इलाके के एक झोलाछाप डॉक्टर से सलाह ली और एनेस्थीसिया का इंजेक्शन और सर्जिकल ब्लेड खरीदा। फिर कमरे में अकेले इंजेक्शन लगाकर प्राइवेट पार्ट काट लिया। इंजेक्शन का असर खत्म होते ही वह दर्द से तड़पने लगा।
करीब एक घंटे तक खून फर्श पर बहता रहा, लेकिन शर्म और डर के मारे किसी ने आवाज़ नहीं उठाई। आखिरकार उसने मकान मालिक को फ़ोन किया। मकान मालिक ने एम्बुलेंस बुलाई और उसे पहले बेली अस्पताल और फिर एसआरएन अस्पताल ले गया। छात्र ने अस्पताल में कहा, 'मैं लड़का नहीं, लड़की हूँ, कोई इस बात पर यकीन नहीं करता, इसलिए मैंने यह कदम उठाया।' डॉक्टरों के मुताबिक, वह 'जेंडर डिस्फोरिया' नामक मानसिक बीमारी से गुज़र रहा है।
डॉक्टरों ने क्या कहा?वरिष्ठ सर्जन डॉ. संतोष सिंह ने कहा, 'अगर उसे समय पर अस्पताल नहीं लाया जाता, तो उसकी जान भी जा सकती थी। अब उसकी काउंसलिंग की जा रही है। अगर वह फिर भी लिंग परिवर्तन करवाना चाहता है, तो एक साल की थेरेपी और एक बहु-विषयक मेडिकल टीम की देखरेख में यह प्रक्रिया की जा सकती है।' छात्र की माँ अपने बेटे के बिस्तर के पास बैठकर रोती रही और डॉक्टरों से उसे ठीक करने की विनती करती रही। इस पूरी घटना ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है।
जेंडर डिस्फोरिया का कारण क्या है?अब सवाल यह उठता है कि कुछ लोगों में लिंग पहचान विकार जैसी समस्या क्यों होती है। दरअसल इसके पीछे कई कारण होते हैं। जिनमें जन्म और पहचान का अंतर प्रमुख है। इसके अंतर्गत, उन्हें उनके शरीर के अनुसार पुरुष या महिला माना जाता है, लेकिन आंतरिक रूप से उनकी लिंग पहचान अलग होती है। एक कारण जैविक/हार्मोनल प्रभाव भी है। दरअसल, ऐसे मामलों में, गर्भ में विकास के दौरान हार्मोन और मस्तिष्क संरचना में अंतर के कारण यह भावना उत्पन्न हो सकती है। इसका मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव भी एक प्रमुख कारण है। बचपन में महसूस किया गया अलगाव, समाज की लिंग-भूमिकाओं का दबाव भी इसे और गहरा कर देता है।
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