एक समय बेंगलुरू में स्टूडेंट्स को फैशन की पढ़ाई पढ़ाने वाले गुलशन देवैया ने डिजानर बनने के बाद जब अभिनय का रुख किया, तो ये रास्ता उनके लिए कत्तई आसान न था। दैट गर्ल इन येलो बूट्स, शैतान, हंटर, मर्द को दर्द नहीं होता जैसी कई फिल्मों में तारीफें बटोरने के बाद वे कांतारा :चैप्टर वन में उनके रोल की काफी सराहना मिली है। उनसे एक खास बातचीत।
अपनी हालिया फिल्म 'कांतारा: चैप्टर 1' की अभूतपूर्व सफलता और अपनी भूमिका को मिली तारीफ पर वे कहते हैं, 'प्रशंसा और एप्रिसिएशन तो मुझे अपने काम के कारण हमेशा मिलता रहा है। मगर जहां तक बॉक्स ऑफिस की बात है, तो मेरे करियर में ऐसी कमाई करने वाली ब्लॉक बस्टर आज तक हुई नहीं है। तो यकीनन इससे मेरा प्रोफाइल काफी स्ट्रॉन्ग हुआ है और जो आगे खिड़कियां और दरवाजे मेरे करियर के लिए खुलेंगे, वो भी अहम होंगे। हमारी इंडस्ट्री में ये जरूर देखा जाता है कि किसकी फिल्म ने कितनी कमाई की है? मुझे लगता है, अब मेरा रेट बढ़ेगा। हां, व्यक्तिगत रूप से कोई फर्क नहीं पड़ा है। मगर मैं इसे इंजॉय कर रहा हूं।
हिट एंड रन केस में पिता की कमर टूटना, बहुत बुरा दौरकला गुलशन को माता-पिता से विरासत में मिली। वे कहते हैं, 'मेरे माता-पिता दोनों कलाकार हैं। संगीत, नाटक और पेंटिंग की विरासत मुझे उन्हीं से मिली। आज मेरी उलब्धियों पर वे खुश होते हैं, मगर मुझे अफसोस है कि वे कांतारा चैप्टर वन नहीं देख पाए। कुछ दिनों पहले एक सड़क हादसे में मेरे पिता की कमर टूट गई थी। वे बेंगलुरू में हिट एंड रन केस के शिकार हो गए। उनकी सर्जरी और ट्रीटमेंट के दौरान मैं उन्हीं के साथ था। जहां तक मेरी मम्मी की बात है, तो वे थिएटर नहीं जा पातीं, वे हैंडीकैप्ड हैं। कई चीजें वे नहीं कर पातीं, तो मुझे उनको नहलाना पड़ता है, बाल संवारने पड़ते हैं। वे बहुत सालों से बीमार हैं। मम्मी को मैं स्पेशल स्क्रीनर या फिर जब ओटीटी पर फिल्म आती है, तब दिखा पाता हूं। मेरी मां 1984 से बीमार रही हैं। उनकी इम्यूनिटी हमेशा लो रही है। मम्मी की हालात हमेशा से बुरी रही है। बीमारी में भी वे ऑफिस जाती थीं। पापा तब दूसरी चीजें संभाला करते थे। 2019 से तो वे बिस्तर पर ही हैं, इसके बावजूद जब मैं 2008 में अभिनय के लिए घर से निकला, तो मम्मी-पापा ने एक बार नहीं कहा कि उनका क्या होगा? किसी ने भी मुझे नहीं रोका। मेरी मां 77 साल की हैं और पिता 89 के, मगर मेरी मम्मी मुझसे एक रुपया भी नहीं लेतीं। मैं उन्हें जब भी पैसे देता हूं, वे लौटा देती हैं। मुझे अपनी ख्वाहिशें पूरी करने के लिए उन्होंने कभी नहीं रोका, तो आज माता-पिता की सेवा करना मेरा फर्ज है।'
मेरे पैरंट भी मेरे फैशन सेन्स पर सवाल उठाते हैंगुलशन को अपने फैशन सेन्स के कारण ट्रोलिंग का सामना भी करना पड़ा है। वे कहते हैं, 'फैशन से मेरा नाता शुरू से ही रहा है। निफ्ट से फैशन का डिप्लोमा लेने के बाद मैं तकरीबन आठ सालों तक बेंगलुरू के कॉलेज में स्टूडेंट्स को फैशन की पढ़ाई करवाई। मैंने आठ सालों तक डिजाइनर के रूप में काम भी किया। जहां तक अपनी ड्रेसिंग को लेकर ट्रोल होने का सवाल है, तो मैं मेरा मानना है कि फैशन फन होना चाहिए। मुझे फैशन के मामले में एक्सपेरिमेंट करना पसंद है। अगर वो लोगों को पसंद नहीं आता, तो कोई बात नहीं। उनकी कोई टिप्पणी जरूर हो सकती है। कई बार मेरे माता-पिता भी कहते हैं कि तुमने ये क्यों पहना है? अच्छा नहीं लग रहा। मगर मुझे बढ़िया लगता है। मैं मजे के लिए करता हूं। मैं फैशन किसी चीपनेस, किसी को नुकसान पहुंचाने या किसी संस्कृति का मजाक उड़ाने के लिए नहीं करता।'
मेरी पहली फिल्म रिलीज ही नहीं हुईअपने संघर्ष के बारे में वे कहते हैं, 'मैं अपने स्ट्रगल का रोना नहीं रोना चाहता, क्योंकि यह इस जर्नी का हिस्सा होता है। मैंने रिजेक्शन भी सहा, तो अपनापन भी मिला। मैं गंभीर रूप से चोटिल होकर घुटने की सर्जरी से भी गुजरा। मगर मुझे अच्छे लोग भी मिले। मैं किसी को गॉडफादर नहीं मानता। आपको अपना रास्ता खुद ढूंढना होता है। अपनी पहली फिल्म टीना की चाबी में मेरा महज 3 दिन का काम था और मैंने इम्प्रोवाइज करके तीन लाइनें बोली थीं। उस फिल्म में मेरे कई दोस्त थे और डायरेक्टर भी परिचित ही थे। उस फिल्म के हीरो रणवीर शौरी थे। वो फिल्म रिलीज नहीं हो पाई थी। टेक्निकली रिलीज हुई मेरी पहली फिल्म दैट गर्ल इन येलो बूट थी। बस उस फिल्म के बाद मेरे करियर की गाड़ी चल निकली।'
कांतारा: चैप्टर वन का रोल मुझे ध्यान में रखकर लिखा गयाअपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं, 'साल 2019 में के डी सतीश चंद्र ने मेरी मुलकात रिषभ शेट्टी से करवाई थी। तब रिषभ ने मुझसे कहा था कि वे हंटर के बहुत बड़े फैन हैं। उस वक्त ही मैं समझ गया था कि अपने क्राफ्ट और काम के लिए इनमें अलग तरह का जुनून है। हमने एक साथ एकाध और फिल्म भी अनाउंस की थी, मगर वो वर्कआउट नहीं हो पाई। फिर एक दिन इनका कॉल आया और अपनी राइटर टीम के साथ उन्होंने बताया कि मुझे ध्यान में रखकर एक भूमिका लिखी गई है। हालांकि शूटिंग आसान नहीं थी। मौसम बहुत खराब था, सड़कें और पुल नहीं थे। रिषभ ने पुल बनवाया, जब गाड़ियां जा नहीं पा रही थी। तमाम चुनौतियों के बावजूद मुश्किल हालातों में भी फिल्म को उत्कृष्ट ढंग से पूरा करने का जुनून उत्कृष्ट रहा।'
अपनी हालिया फिल्म 'कांतारा: चैप्टर 1' की अभूतपूर्व सफलता और अपनी भूमिका को मिली तारीफ पर वे कहते हैं, 'प्रशंसा और एप्रिसिएशन तो मुझे अपने काम के कारण हमेशा मिलता रहा है। मगर जहां तक बॉक्स ऑफिस की बात है, तो मेरे करियर में ऐसी कमाई करने वाली ब्लॉक बस्टर आज तक हुई नहीं है। तो यकीनन इससे मेरा प्रोफाइल काफी स्ट्रॉन्ग हुआ है और जो आगे खिड़कियां और दरवाजे मेरे करियर के लिए खुलेंगे, वो भी अहम होंगे। हमारी इंडस्ट्री में ये जरूर देखा जाता है कि किसकी फिल्म ने कितनी कमाई की है? मुझे लगता है, अब मेरा रेट बढ़ेगा। हां, व्यक्तिगत रूप से कोई फर्क नहीं पड़ा है। मगर मैं इसे इंजॉय कर रहा हूं।
हिट एंड रन केस में पिता की कमर टूटना, बहुत बुरा दौरकला गुलशन को माता-पिता से विरासत में मिली। वे कहते हैं, 'मेरे माता-पिता दोनों कलाकार हैं। संगीत, नाटक और पेंटिंग की विरासत मुझे उन्हीं से मिली। आज मेरी उलब्धियों पर वे खुश होते हैं, मगर मुझे अफसोस है कि वे कांतारा चैप्टर वन नहीं देख पाए। कुछ दिनों पहले एक सड़क हादसे में मेरे पिता की कमर टूट गई थी। वे बेंगलुरू में हिट एंड रन केस के शिकार हो गए। उनकी सर्जरी और ट्रीटमेंट के दौरान मैं उन्हीं के साथ था। जहां तक मेरी मम्मी की बात है, तो वे थिएटर नहीं जा पातीं, वे हैंडीकैप्ड हैं। कई चीजें वे नहीं कर पातीं, तो मुझे उनको नहलाना पड़ता है, बाल संवारने पड़ते हैं। वे बहुत सालों से बीमार हैं। मम्मी को मैं स्पेशल स्क्रीनर या फिर जब ओटीटी पर फिल्म आती है, तब दिखा पाता हूं। मेरी मां 1984 से बीमार रही हैं। उनकी इम्यूनिटी हमेशा लो रही है। मम्मी की हालात हमेशा से बुरी रही है। बीमारी में भी वे ऑफिस जाती थीं। पापा तब दूसरी चीजें संभाला करते थे। 2019 से तो वे बिस्तर पर ही हैं, इसके बावजूद जब मैं 2008 में अभिनय के लिए घर से निकला, तो मम्मी-पापा ने एक बार नहीं कहा कि उनका क्या होगा? किसी ने भी मुझे नहीं रोका। मेरी मां 77 साल की हैं और पिता 89 के, मगर मेरी मम्मी मुझसे एक रुपया भी नहीं लेतीं। मैं उन्हें जब भी पैसे देता हूं, वे लौटा देती हैं। मुझे अपनी ख्वाहिशें पूरी करने के लिए उन्होंने कभी नहीं रोका, तो आज माता-पिता की सेवा करना मेरा फर्ज है।'
मेरे पैरंट भी मेरे फैशन सेन्स पर सवाल उठाते हैंगुलशन को अपने फैशन सेन्स के कारण ट्रोलिंग का सामना भी करना पड़ा है। वे कहते हैं, 'फैशन से मेरा नाता शुरू से ही रहा है। निफ्ट से फैशन का डिप्लोमा लेने के बाद मैं तकरीबन आठ सालों तक बेंगलुरू के कॉलेज में स्टूडेंट्स को फैशन की पढ़ाई करवाई। मैंने आठ सालों तक डिजाइनर के रूप में काम भी किया। जहां तक अपनी ड्रेसिंग को लेकर ट्रोल होने का सवाल है, तो मैं मेरा मानना है कि फैशन फन होना चाहिए। मुझे फैशन के मामले में एक्सपेरिमेंट करना पसंद है। अगर वो लोगों को पसंद नहीं आता, तो कोई बात नहीं। उनकी कोई टिप्पणी जरूर हो सकती है। कई बार मेरे माता-पिता भी कहते हैं कि तुमने ये क्यों पहना है? अच्छा नहीं लग रहा। मगर मुझे बढ़िया लगता है। मैं मजे के लिए करता हूं। मैं फैशन किसी चीपनेस, किसी को नुकसान पहुंचाने या किसी संस्कृति का मजाक उड़ाने के लिए नहीं करता।'
मेरी पहली फिल्म रिलीज ही नहीं हुईअपने संघर्ष के बारे में वे कहते हैं, 'मैं अपने स्ट्रगल का रोना नहीं रोना चाहता, क्योंकि यह इस जर्नी का हिस्सा होता है। मैंने रिजेक्शन भी सहा, तो अपनापन भी मिला। मैं गंभीर रूप से चोटिल होकर घुटने की सर्जरी से भी गुजरा। मगर मुझे अच्छे लोग भी मिले। मैं किसी को गॉडफादर नहीं मानता। आपको अपना रास्ता खुद ढूंढना होता है। अपनी पहली फिल्म टीना की चाबी में मेरा महज 3 दिन का काम था और मैंने इम्प्रोवाइज करके तीन लाइनें बोली थीं। उस फिल्म में मेरे कई दोस्त थे और डायरेक्टर भी परिचित ही थे। उस फिल्म के हीरो रणवीर शौरी थे। वो फिल्म रिलीज नहीं हो पाई थी। टेक्निकली रिलीज हुई मेरी पहली फिल्म दैट गर्ल इन येलो बूट थी। बस उस फिल्म के बाद मेरे करियर की गाड़ी चल निकली।'
कांतारा: चैप्टर वन का रोल मुझे ध्यान में रखकर लिखा गयाअपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं, 'साल 2019 में के डी सतीश चंद्र ने मेरी मुलकात रिषभ शेट्टी से करवाई थी। तब रिषभ ने मुझसे कहा था कि वे हंटर के बहुत बड़े फैन हैं। उस वक्त ही मैं समझ गया था कि अपने क्राफ्ट और काम के लिए इनमें अलग तरह का जुनून है। हमने एक साथ एकाध और फिल्म भी अनाउंस की थी, मगर वो वर्कआउट नहीं हो पाई। फिर एक दिन इनका कॉल आया और अपनी राइटर टीम के साथ उन्होंने बताया कि मुझे ध्यान में रखकर एक भूमिका लिखी गई है। हालांकि शूटिंग आसान नहीं थी। मौसम बहुत खराब था, सड़कें और पुल नहीं थे। रिषभ ने पुल बनवाया, जब गाड़ियां जा नहीं पा रही थी। तमाम चुनौतियों के बावजूद मुश्किल हालातों में भी फिल्म को उत्कृष्ट ढंग से पूरा करने का जुनून उत्कृष्ट रहा।'
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