नई दिल्ली: दिल्ली की हवा में अब सिर्फ धूल और धुआं नहीं है, बल्कि उसमें बेहद बारीक प्लास्टिक के कण भी तैर रहे हैं, जिन्हें हम हर सांस के साथ फेफड़ों में खींच रहे है। नई स्टडी में खुलासा हुआ है कि दिल्ली के बाजारों और भीड़भाड़ वाली जगहों पर हवा में इनहेलेबल माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा 14.18 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (g/m) पाई गई है।
यह प्लास्टिक इतना सूक्ष्म है कि आंखों से दिखता नहीं, लेकिन हर सांस के साथ शरीर में पहुंचकर फेफड़ों में जमा होता रहता है। स्टडी के मुताबिक, हवा के एक क्यूबिक मीटर में औसतन 38 प्लास्टिक के कण मौजूद है। यह खतरा सर्दियों में और भी बढ़ जाता है, क्योंकि सर्दियों में हवा सतह के पास रुक जाती है। सिंथेटिक कपड़ों का उपयोग बढ़ जाता है और बाजारों में भीड़ और गाड़ियों की आवाजाही तेज रहती है।
प्रदूषण 14 से 71 प्रतिशत तक बढ़ जाता हैइसी कारण सर्दियों में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण 14 से 71 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। यह खुलासा कोलकाता के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) और एम्स कल्याणी के वैज्ञानिकों ने किया है। यह रिसर्च 2 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय जर्नल एनवायरमेंटल इंटरनेशनल में प्रकाशित हुई। इसके प्रमुख लेखक अभिषेक बिस्वास और एसोसिएट प्रोफेसर गोपाल कृष्ण दर्भा है। भारत के चार बड़े शहरों दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई के भीड़भाड़ वाले बाजार के इलाकों में सैंपल लिए। नतीजों के मुताबिक कोलकाता में माइक्रोप्लाटिक 14.23 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर मिला, जबकि दिल्ली की हवा में यह 14.18, चेन्नै में 4 और मुंबई में 2.65 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर माइक्रो प्लास्टिक मिला।
बैक्टीरिया और फंगस भी शरीर में जा रहेवैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि ये माइक्रोप्लास्टिक अकेले नहीं आते। यह अपने साथ जहरीले रसायन, डाई, कार्बन और यहां तक कि ऐसे बैक्टीरिया और फंगस भी लेकर चलते है, जिनमें एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस जीन मौजूद होते हैं। इसका मतलब यह है कि ऐसे रोगाणुओं से शरीर को होने वाला संक्रमण सामान्य दवाओं से ठीक होना मुश्किल हो सकता है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यह समस्या लंबे समय में फेफड़ो की सूजन, सांस संबंधी बीमारियो, हार्मोन गड़बड़ी और कुछ प्रकार के कैंसर तक के जोखिम को बढ़ा सकती है।
यह प्लास्टिक इतना सूक्ष्म है कि आंखों से दिखता नहीं, लेकिन हर सांस के साथ शरीर में पहुंचकर फेफड़ों में जमा होता रहता है। स्टडी के मुताबिक, हवा के एक क्यूबिक मीटर में औसतन 38 प्लास्टिक के कण मौजूद है। यह खतरा सर्दियों में और भी बढ़ जाता है, क्योंकि सर्दियों में हवा सतह के पास रुक जाती है। सिंथेटिक कपड़ों का उपयोग बढ़ जाता है और बाजारों में भीड़ और गाड़ियों की आवाजाही तेज रहती है।
प्रदूषण 14 से 71 प्रतिशत तक बढ़ जाता हैइसी कारण सर्दियों में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण 14 से 71 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। यह खुलासा कोलकाता के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) और एम्स कल्याणी के वैज्ञानिकों ने किया है। यह रिसर्च 2 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय जर्नल एनवायरमेंटल इंटरनेशनल में प्रकाशित हुई। इसके प्रमुख लेखक अभिषेक बिस्वास और एसोसिएट प्रोफेसर गोपाल कृष्ण दर्भा है। भारत के चार बड़े शहरों दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई के भीड़भाड़ वाले बाजार के इलाकों में सैंपल लिए। नतीजों के मुताबिक कोलकाता में माइक्रोप्लाटिक 14.23 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर मिला, जबकि दिल्ली की हवा में यह 14.18, चेन्नै में 4 और मुंबई में 2.65 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर माइक्रो प्लास्टिक मिला।
बैक्टीरिया और फंगस भी शरीर में जा रहेवैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि ये माइक्रोप्लास्टिक अकेले नहीं आते। यह अपने साथ जहरीले रसायन, डाई, कार्बन और यहां तक कि ऐसे बैक्टीरिया और फंगस भी लेकर चलते है, जिनमें एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस जीन मौजूद होते हैं। इसका मतलब यह है कि ऐसे रोगाणुओं से शरीर को होने वाला संक्रमण सामान्य दवाओं से ठीक होना मुश्किल हो सकता है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यह समस्या लंबे समय में फेफड़ो की सूजन, सांस संबंधी बीमारियो, हार्मोन गड़बड़ी और कुछ प्रकार के कैंसर तक के जोखिम को बढ़ा सकती है।
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