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भारत के कर्ज से दबा इजरायल, अब निभा रहा दोस्ती...पहलगाम अटैक के बहाने पाकिस्तान को खरी-खरी, दर्द तो होगा

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नई दिल्ली : इजरायल के विदेश मंत्री गिदोन सा'र भारत पहुंचे हैं। विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर के साथ बैठक में गिदोन सा'र ने कहा-कट्टरपंथी आतंकवाद इजरायल और भारत के लिए एक पारस्परिक खतरा है। उन्होंने भारत की धरती से पाकिस्तान को दो टूक सुनाते हुए कहा-हम पहलगाम में हुए भीषण आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा करते हैं। इजरायल एक अनोखी स्थिति का सामना कर रहा है जिसे मैं आतंकवादी राज्य कहता हूं। गाजा में हमास, लेबनान में हिजबुल्लाह और यमन में हूथी जैसे कट्टरपंथी आतंकवादी संगठनों ने पिछले दशकों में खुद को स्थापित किया है। हमारे क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता के लिए इन्हें उखाड़ फेंकना आवश्यक है। हमास जैसे आतंकवादी संगठन का उन्मूलन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की योजना के केंद्र में है। हमास को निरस्त्र किया जाना चाहिए और गाजा को विसैन्यीकृत किया जाना चाहिए। हम इससे समझौता नहीं करेंगे।


इजरायल के विदेश मंत्री ने और क्या-क्या कहा

इजरायली विदेश मंत्री ने कहा-इजरायल एक क्षेत्रीय महाशक्ति और एक फलता-फूलता लोकतंत्र है। भारत एक वैश्विक महाशक्ति, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। हमारा लक्ष्य हमारे देशों के बीच एक दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी बनाना है। हम इसे पूरा करेंगे। इजरायल ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी भारत का खुले दिल से समर्थन किया था। दोनों ही देश आतंक से पीड़ित हैं। ऐसे मे ंदोनों ही देश आतंक पर एक राय बनाते हुए नजर आते हैं।


अगले साल AI Impact Summit की मेजबानी करेगा भारत

वहीं, इजरायल के विदेश मंत्री गिदोन सार के साथ बैठक में विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कहा-सेमीकंडक्टर्स और साइबर में सहयोग का इतिहास रहा है। यह अब और अधिक प्रासंगिक हो गया है। हम अगले साल फरवरी में भारत में एआई इम्पैक्ट समिट की मेजबानी कर रहे हैं। हम इजरायल की उपस्थिति की बहुत प्रतीक्षा कर रहे हैं।

इजरायल पर किस तरह का कर्ज है
नवभारत टाइम्स की एक स्टोरी के अनुसार, दरअसल, भारत ने 100 साल पहले इजरायल के हाइफा शहर को तुर्कों से आजाद कराया था। हाइफा की लड़ाई को अब इतिहास के अंतिम महान घुड़सवार अभियानों में से एक माना जाता है। भालों और तलवारों से लैस भारतीय रेजिमेंटों ने माउंट कार्मेल की खड़ी ढलानों को पार करके ओटोमन सेनाओं को खदेड़ दिया। कठिन बाधाओं के बावजूद उन्होंने पूरे शहर को सुरक्षित कर लिया। इस वीरतापूर्ण अभियान को उसकी असाधारण बहादुरी और रणनीतिक प्रभाव के लिए याद किया जाता है।


बैटल ऑफ हाइफा, जिसके कर्ज से दबा है इजरायल
विकीपीडिया के अनुसार, हाइफा की लड़ाई 23 सितंबर 1918 को लड़ी गई। इस लड़ाई में राजपूताने की सेना का नेतृत्व जोधपुर रियासत के सेनापति मेजर दलपत सिंह ने किया। अंग्रेजो ने जोधपुर रियासत की सेना को हाइफा पर कब्जा करने के आदेश दिए। आदेश मिलते ही जोधपुर रियासत के सेनापति दलपत सिंह ने अपनी सेना को दुश्मन पर टूट पड़ने के लिए निर्देश दिया। यह सेना दुश्मन पर विजय प्राप्त करने के लिए बंदूकें, तोपों और मशीन गन के सामने अपने छाती अड़ाकर अपनी परंपरागत युद्ध शैली से बड़ी बहादुरी के लड़ी। इस लड़ाई में जोधपुर की सेना के करीब 900 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। आखिरकार जीत भारतीयों को मिली, जिन्होंने हाइफा पर कब्जा कर लिया। इस तरह से हाइफा पर कब्जा जमाए 400 साल पुराने ओटोमन साम्राज्य का अंत हो गया।


हाइफा आजाद कराने में 74,000 भारतीय सैनिकों ने गंवाई थी जान
न्यूजऑन एयर की एक खबर के अनुसार, इजरायल में भारतीय राजदूत जेपी सिंह ने कहा कि यह एकमात्र ऐसा रिकॉर्डेड उदाहरण है, जहां किसी घुड़सवार सेना ने इतनी तेजी से किसी किलेबंद शहर पर कब्जा किया हो। उन्होंने बताया कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 74,000 से ज्यादा भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी, जिनमें से 4,000 से ज्यादा पश्चिम एशिया में शहीद हुए। 1918 में हाइफा को आजाद कराने वाले तत्कालीन जोधपुर, मैसूर और हैदराबाद लांसर्स के भारतीय सैनिकों के साहस और वीरता को सम्मानित किया।

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