नई दिल्ली: महाराष्ट्र के मोहम्मद अफजल (17) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की। अफजल की याचिका अकोला में साल 2023 में हुए दंगों से संबंधित थी। इस याचिका में दावा किया गया कि दो साल पहले हुए इन दंगों में एक हिंदू ऑटो रिक्शा ड्राइवर की मुस्लिम समझकर हत्या कर दी गई। याचिका में अफजल ने कहा कि उसने 4 लोगों को देखा था। आरोपियों में से एक के बाद में राजनीतिक संबंध भी उजागर हुए थे। आरोपियों ने अफजल पर भी हमला किया था, जिसमें वह घायल हो गया था।
अफजल के मुताबिक वह हिम्मत जुटाकर पुलिस स्टेशन पहुंचा और खुद पर हुए हमले की शिकायत दर्ज कराई। हालांकि, पुलिस ने उसकी कोई सुनवाई नहीं की। इसके बाद एक शिकायत अकोला के पुलिस अधीक्षक से की गई, लेकिन उन्होंने भी दिलचस्पी नहीं दिखाई। बाद में हत्या के शिकार की पहचान विलास महादेवराव गायकवाड़ के रूप में हुई। विलास एक मुसलमान का ऑटो रिक्शा चलाता था। अफजल का दावा है कि गायकवाड़ की हत्या इस गलतफहमी में की गई कि वह मुसलमान है।
सभी धर्मों और आस्थाओं के प्रति तटस्थ रहना चाहिएइस मामले पर सख्त टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस संजय कुमार ने कहा कि राज्य को धार्मिक उत्पीड़न और धर्मनिरपेक्षता से जुड़े मुद्दों से निपटते समय स्पष्ट पारदर्शिता और निष्पक्षता दिखानी चाहिए। जस्टिस कुमार ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य को सभी धर्मों और आस्थाओं के प्रति तटस्थ रहना चाहिए, लेकिन शासन तंत्र में काम करने वाले पुरुष और महिलाएं अलग-अलग समुदायों और धर्मों से संबंधित हैं। उन्होंने यह संकेत दिया कि राज्य तंत्र में काम करने वाले पुरुष और महिलाएं आखिरकार अन्य सभी धर्मों से ऊपर अपने विशेष धर्मों के प्रति निष्ठा रखते हैं और उनके हित में काम करते हैं।
बराबर संख्या में हों हिंदू और मुस्लिम अधिकारीजस्टिस कुमार की यह टिप्पणी महाराष्ट्र सरकार की एक याचिका को रद्द करते हुए आई है। इस याचिका में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की समीक्षा करने की मांग की थी, जिसमें 2023 के अकोला सांप्रदायिक दंगों की पृष्ठभूमि में हमले के आरोपों की जांच के लिए एक ऐसी एसआईटी के गठन का निर्देश दिया गया था, जिसमें मुस्लिम और हिंदू पुलिस अधिकारी बराबर संख्या में हों।
पारदर्शिता और निष्पक्षता स्पष्ट होनी चाहिए- SCजस्टिस कुमार ने आगे कहा कि भारत ने धर्मनिरपेक्षता की अपनी अलग व्याख्या डेवलप की है, जहां राज्य न तो किसी धर्म का समर्थन करता है और न ही किसी धर्म के पालन और आचरण को दंडित करता है। यह आदर्श होने के कारण, राज्य तंत्र को अपने कार्यों को मुताबिक ढालना चाहिए, लेकिन इस राज्य तंत्र में आखिरकार अलग-अलग धर्मों और समुदायों के सदस्य शामिल होते हैं। इसलिए, धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक उत्पीड़न से दूर-दूर तक जुड़े मामलों में भी उनके कार्यों में पारदर्शिता और निष्पक्षता स्पष्ट होनी चाहिए।
जानें, क्यों विभाजित हो गई फैसले पर रायहालांकि, सुनवाई कर रही पीठ के दूसरे जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने राज्य सरकार से सहमति जताते हुए निष्कर्ष निकाला कि फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है, जिससे समीक्षा याचिका पर उनकी राय विभाजित हो गई। जस्टिस कुमार ने सितंबर महीने में निर्णय सुनाया था कि जांच में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए दोनों समुदायों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को शामिल करते हुए एक एसआईटी का गठन किया जाना चाहिए। उस समय जस्टिस शर्मा ने भी इसका समर्थन किया था।
अफजल के मुताबिक वह हिम्मत जुटाकर पुलिस स्टेशन पहुंचा और खुद पर हुए हमले की शिकायत दर्ज कराई। हालांकि, पुलिस ने उसकी कोई सुनवाई नहीं की। इसके बाद एक शिकायत अकोला के पुलिस अधीक्षक से की गई, लेकिन उन्होंने भी दिलचस्पी नहीं दिखाई। बाद में हत्या के शिकार की पहचान विलास महादेवराव गायकवाड़ के रूप में हुई। विलास एक मुसलमान का ऑटो रिक्शा चलाता था। अफजल का दावा है कि गायकवाड़ की हत्या इस गलतफहमी में की गई कि वह मुसलमान है।
सभी धर्मों और आस्थाओं के प्रति तटस्थ रहना चाहिएइस मामले पर सख्त टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस संजय कुमार ने कहा कि राज्य को धार्मिक उत्पीड़न और धर्मनिरपेक्षता से जुड़े मुद्दों से निपटते समय स्पष्ट पारदर्शिता और निष्पक्षता दिखानी चाहिए। जस्टिस कुमार ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य को सभी धर्मों और आस्थाओं के प्रति तटस्थ रहना चाहिए, लेकिन शासन तंत्र में काम करने वाले पुरुष और महिलाएं अलग-अलग समुदायों और धर्मों से संबंधित हैं। उन्होंने यह संकेत दिया कि राज्य तंत्र में काम करने वाले पुरुष और महिलाएं आखिरकार अन्य सभी धर्मों से ऊपर अपने विशेष धर्मों के प्रति निष्ठा रखते हैं और उनके हित में काम करते हैं।
बराबर संख्या में हों हिंदू और मुस्लिम अधिकारीजस्टिस कुमार की यह टिप्पणी महाराष्ट्र सरकार की एक याचिका को रद्द करते हुए आई है। इस याचिका में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की समीक्षा करने की मांग की थी, जिसमें 2023 के अकोला सांप्रदायिक दंगों की पृष्ठभूमि में हमले के आरोपों की जांच के लिए एक ऐसी एसआईटी के गठन का निर्देश दिया गया था, जिसमें मुस्लिम और हिंदू पुलिस अधिकारी बराबर संख्या में हों।
पारदर्शिता और निष्पक्षता स्पष्ट होनी चाहिए- SCजस्टिस कुमार ने आगे कहा कि भारत ने धर्मनिरपेक्षता की अपनी अलग व्याख्या डेवलप की है, जहां राज्य न तो किसी धर्म का समर्थन करता है और न ही किसी धर्म के पालन और आचरण को दंडित करता है। यह आदर्श होने के कारण, राज्य तंत्र को अपने कार्यों को मुताबिक ढालना चाहिए, लेकिन इस राज्य तंत्र में आखिरकार अलग-अलग धर्मों और समुदायों के सदस्य शामिल होते हैं। इसलिए, धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक उत्पीड़न से दूर-दूर तक जुड़े मामलों में भी उनके कार्यों में पारदर्शिता और निष्पक्षता स्पष्ट होनी चाहिए।
जानें, क्यों विभाजित हो गई फैसले पर रायहालांकि, सुनवाई कर रही पीठ के दूसरे जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने राज्य सरकार से सहमति जताते हुए निष्कर्ष निकाला कि फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है, जिससे समीक्षा याचिका पर उनकी राय विभाजित हो गई। जस्टिस कुमार ने सितंबर महीने में निर्णय सुनाया था कि जांच में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए दोनों समुदायों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को शामिल करते हुए एक एसआईटी का गठन किया जाना चाहिए। उस समय जस्टिस शर्मा ने भी इसका समर्थन किया था।
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