पटना: बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर, सत्ताधारी एनडीए की रणनीति में अब बड़ा बदलाव आया है। बिहार में अतिरिक्त वोट हासिल करने के लिए सोशल इंजीनियरिंग की कोशिशें अब पीछे छूटती दिख रही हैं। एनडीए गठबंधन अपने पारंपरिक वोट बैंक को और मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इसका स्पष्ट संकेत एनडीए के दो सबसे बड़े घटक दलों बीजेपी और जेडीयू की ओर से चुनावी मैदान में उतारे गए यादव उम्मीदवारों की संख्या में भारी कटौती से मिलता है।
बीजेपी ने इस बार केवल छह यादवों को टिकट दिया है, जबकि 2020 के चुनाव में यह संख्या 16 थी। वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू ने भी पिछली बार के 18 यादव उम्मीदवारों की तुलना में इस बार केवल आठ यादव प्रत्याशियों को टिकट दिया है। इतना ही नहीं, जेडीयू ने इस बार केवल 4 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि 2020 में 11 मुस्लिम नेताओं को टिकट दिया था।
बीजेपी का नया चुनावी गेमप्लान
बीजेपी ने बिहार चुनाव के लिए बदली अपनी रणनीति के तहत कई यादव विधायकों की जगह नए चेहरों पर दांव लगाया है। बीजेपी ने इस बार यादवों के बाद सबसे अधिक आबादी वाले OBC समुदाय कुशवाहा, तेजी से मुखर होते अति पिछड़ा वर्ग (EBC) समूह के निषाद, और पार्टी के पारंपरिक समर्थक रहे वैश्य पर दांव लगाया है।
उदाहरण के तौर पर देखें तो पटना साहिब सीट से बीजेपी ने अपने वर्तमान विधायक नंद किशोर यादव का टिकट काट दिया। इनकी जगह बीजेपी ने कुशवाहा जाति से आने वाले रत्नेश कुशवाहा पर दांव लगाया है। वहीं मुजफ्फरपुर जिले की औराई सीट से बीजेपी ने अपने विधायक राम सूरत राय का टिकट काटकर निषाद समुदाए से आने वाले नेता अजय निषाद की पत्नी रमा निषाद को टिकट दिया है।
बिहार में वोट बैंक विस्तार की कोशिशों से पीछे क्यों हटी बीजेपी?राजनीति के जानकारों का मानना है कि बीजेपी ने 2014 से लेकर बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनने तक हमेशा अपने वोट बैंक का विस्तार करने की कोशिश की थी। यादवों को ज्यादा टिकट देना इसी रणनीति का हिस्सा था, लेकिन 14.2% आबादी वाला यादव समुदाय लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद के साथ ही बना रहा।
बीजेपी और जेडीयू की बदली रणनीति पर वरिष्ठ पत्रकार मनीष कुमार भारती कहते हैं कि पिछले कुछ चुनाव में बीजेपी और जेडीयू ने अपने कोर वोट बैंक से हटकर यादव और मुस्लिम वोट बैंक पर फोकस किया। लेकिन इससे पार्टियों को कोई खास सफलता नहीं मिली। यादव और मुस्लिमों ने लालू यादव की पार्टी का साथ नहीं छोड़ा। ऐसे में बीजेपी और जेडीयू को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी है।
बीजेपी ने इस बार केवल छह यादवों को टिकट दिया है, जबकि 2020 के चुनाव में यह संख्या 16 थी। वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू ने भी पिछली बार के 18 यादव उम्मीदवारों की तुलना में इस बार केवल आठ यादव प्रत्याशियों को टिकट दिया है। इतना ही नहीं, जेडीयू ने इस बार केवल 4 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि 2020 में 11 मुस्लिम नेताओं को टिकट दिया था।
बीजेपी का नया चुनावी गेमप्लान
बीजेपी ने बिहार चुनाव के लिए बदली अपनी रणनीति के तहत कई यादव विधायकों की जगह नए चेहरों पर दांव लगाया है। बीजेपी ने इस बार यादवों के बाद सबसे अधिक आबादी वाले OBC समुदाय कुशवाहा, तेजी से मुखर होते अति पिछड़ा वर्ग (EBC) समूह के निषाद, और पार्टी के पारंपरिक समर्थक रहे वैश्य पर दांव लगाया है।
उदाहरण के तौर पर देखें तो पटना साहिब सीट से बीजेपी ने अपने वर्तमान विधायक नंद किशोर यादव का टिकट काट दिया। इनकी जगह बीजेपी ने कुशवाहा जाति से आने वाले रत्नेश कुशवाहा पर दांव लगाया है। वहीं मुजफ्फरपुर जिले की औराई सीट से बीजेपी ने अपने विधायक राम सूरत राय का टिकट काटकर निषाद समुदाए से आने वाले नेता अजय निषाद की पत्नी रमा निषाद को टिकट दिया है।
बिहार में वोट बैंक विस्तार की कोशिशों से पीछे क्यों हटी बीजेपी?राजनीति के जानकारों का मानना है कि बीजेपी ने 2014 से लेकर बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनने तक हमेशा अपने वोट बैंक का विस्तार करने की कोशिश की थी। यादवों को ज्यादा टिकट देना इसी रणनीति का हिस्सा था, लेकिन 14.2% आबादी वाला यादव समुदाय लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद के साथ ही बना रहा।
बीजेपी और जेडीयू की बदली रणनीति पर वरिष्ठ पत्रकार मनीष कुमार भारती कहते हैं कि पिछले कुछ चुनाव में बीजेपी और जेडीयू ने अपने कोर वोट बैंक से हटकर यादव और मुस्लिम वोट बैंक पर फोकस किया। लेकिन इससे पार्टियों को कोई खास सफलता नहीं मिली। यादव और मुस्लिमों ने लालू यादव की पार्टी का साथ नहीं छोड़ा। ऐसे में बीजेपी और जेडीयू को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी है।
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