लखनऊ: बिहार विधानसभा चुनाव इस बार केवल एक राज्य की सत्ता के लिए नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की आगामी राजनीति के लिए भी निर्णायक माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश से बीजेपी को झटका देने वाले सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बिहार में भले ही कोई प्रत्याशी नहीं उतारा, लेकिन चुनावी मैदान पूरा दम दिखाया। राजद और महागठबंधन उम्मीदवारों के पक्ष में पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए पॉलिटिक्स को जमीन पर उतारने की कोशिश करते रहे। दूसरी ओर, सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी बिहार में बीजेपी और एनडीए उम्मीदवारों के समर्थन में अपनी पूरी ताकत झोंक दी।
राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि यह चुनाव 2027 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल साबित हो सकता है। बिहार की धरती पर लड़ी जा रही यह जंग अब यूपी की राजनीति की धड़कन बढ़ा चुकी है। इस बीच बिहार चुनाव के एक्जिट पोल रिजल्ट ने 14 नवंबर को जारी होने वाले चुनाव परिणाम से पहले एक तस्वीर खींचने की कोशिश की है। इससे साफ हो रहा है कि विपक्षी एकता के तमाम प्रयासों के बाद भी नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार एक बार फिर सत्ता में लौटने वाली है। ऐसे में योगी आदित्यनाथ सपा अध्यक्ष पर बढ़त बनाते दिख रहे हैं।
बिहार में अखिलेश बनाम योगीबिहार के रण में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव दोनों ने अपने-अपने मोर्चे खोल दिए। सीएम योगी ने पिछले 10 दिनों में 30 जनसभाएं और एक रोड शो किया। इनमें उन्होंने एनडीए के घटक दलों जेडीयू, एलजेपी (रामविलास), हम और आरएलएम के कुल 43 उम्मीदवारों के लिए वोट मांगे।
वहीं, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 7 दिनों में 28 सभाएं कीं। इनमें उन्होंने महागठबंधन के प्रत्याशियों के लिए समर्थन मांगा। वह राजद, कांग्रेस, वामपंथी दल या वीआईपी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए वोट मांगते दिखे।
योगी का बुलडोजर मॉडल मुद्दाबिहार की रैलियों में योगी आदित्यनाथ का बुलडोजर मॉडल मुख्य मुद्दा बना रहा। उन्होंने यूपी में अपराधियों और माफिया पर की गई सख्त कार्रवाई को अपना मुख्य चुनावी हथियार बनाया। सीएम योगी ने हर सभा में यह संदेश दिया कि जो भारत की सुरक्षा में सेंध लगाएगा, वह यमराज का टिकट लेकर जाएगा। योगी ने कहा कि बिहार को भी अपराध और माफिया से मुक्त होना होगा। ठीक उसी तरह जैसे उत्तर प्रदेश में बुलडोजर ने कानून का राज कायम किया।
सीएम योगी की रैलियां केवल बीजेपी नहीं बल्कि जेडीयू और एनडीए के अन्य दलों के पक्ष में भी थीं। इसे यूपी के राजनीतिक समीकरणों से जोड़कर देखा जा रहा है। योगी का यह अभियान ओबीसी और दलित वोट बैंक को दोबारा एकजुट करने की कोशिश भी माना जा रहा है, क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इसी तबके से सबसे बड़ा नुकसान हुआ था।
अखिलेश यादव का बदलाव वाला प्रचारअखिलेश यादव ने बिहार की जनता से अपील की कि अगर बिहार में बदलाव आया तो देश की राजनीति का रास्ता भी बदलेगा। उन्होंने कहा कि 2024 में समाजवादियों ने यूपी में बीजेपी को अवध और अयोध्या में हराया, अब बिहार के मगध में भी हराएंगे। अखिलेश ने अपने भाषणों में केंद्र की मोदी सरकार और यूपी की योगी सरकार दोनों पर सीधा हमला बोला। उन्होंने बीजेपी पर झूठ बोलने और नफरत फैलाने का आरोप लगाया। साथ ही, उन्होंने कहा कि यह चुनाव महागठबंधन के ज़रिए जनता के आत्मसम्मान की लड़ाई है।
सपा की पूरी फौज मैदान में उतरीहालांकि, सपा बिहार की किसी सीट पर चुनाव नहीं लड़ रही, लेकिन अखिलेश यादव ने अपने सभी दिग्गजों को मैदान में उतार दिया। अवधेश प्रसाद के साथ अखिलेश ने मगध और शाहाबाद क्षेत्र की कमान संभाली। इकरा हसन को सीमांचल के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी गई। अफजाल अंसारी यूपी से सटी हुई सीटों पर प्रचार करते दिखे। राजीव राय, ओमप्रकाश सिंह, आशु मलिक, जयप्रकाश अंचल और अन्य नेताओं ने अपने-अपने जातीय और क्षेत्रीय आधारों पर प्रचार किया।
अखिलेश यादव का उद्देश्य साफ था कि महागठबंधन को मजबूती देना, ओवैसी के प्रभाव को सीमांचल में कम करना और यूपी में भविष्य की राजनीतिक जमीन तैयार करना। सपा अध्यक्ष की कोशिश पीडीए पॉलिटिक्स को धार देकर यूपी से बाहर भी पार्टी का प्रभाव क्षेत्र बनाना है।
ओवैसी के प्रभाव को रोकने की रणनीति2020 में सीमांचल की पांच सीटें जीतने वाले असदुद्दीन ओवैसी इस बार भी मुस्लिम वोटों पर नजर गड़ाए हुए हैं। लेकिन, इस बार अखिलेश यादव ने इकरा हसन और अफजाल अंसारी जैसे सशक्त मुस्लिम चेहरों को सामने लाकर ओवैसी के प्रभाव को रोकने की रणनीति बनाई। इकरा हसन ने अपने भाषणों में कहा कि अगर वोट बंटे तो बीजेपी फिर से सत्ता में आएगी। इसलिए हमें एकजुट होकर महागठबंधन को जीताना होगा।
वहीं, अफजाल अंसारी ने तीखे लहजे में कहा कि ओवैसी वही काम कर रहे हैं जो आरएसएस कर रही है, मुसलमानों को बांटने का। दरअसल, बिहार की 34 सीटें यूपी की सीमा से सटी हैं। महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, बलिया, गाजीपुर, चंदौली और सोनभद्र जैसे जिलों की सीमाएं बिहार के सारण, सीवान, गोपालगंज, भोजपुर, बक्सर, कैमूर और पश्चिम चंपारण से लगती हैं।
रिजल्ट का दिखेगा यूपी में असरराजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में एनडीए की जीत से बीजेपी को यूपी में 2027 के लिए नई ऊर्जा मिलेगी। लोकसभा चुनाव के बाद गिरे मनोबल को दोबारा खड़ा करने में मदद मिलेगी। वहीं, अगर महागठबंधन को जीत मिलती है तो अखिलेश यादव की राजनीतिक जमीन मजबूत होगी। यूपी चुनाव 2027 में उनकी वापसी की राह आसान बन सकती है। अखिलेश का यह भी मकसद है कि ओवैसी जैसे दलों को बिहार में रोका जाए ताकि यूपी में मुस्लिम वोटों का बिखराव न हो।
एक्जिट पोल में एनडीए को बढ़तएक्जिट पोल रिजल्ट में एनडीए को एक बार फिर बढ़त मिलती दिख रही है। सीएम योगी आदित्यनाथ के बिहार में किए गए ताबड़तोड़ चुनाव प्रचार से भी इस बढ़त को देखा जा रहा है। अगर एनडीए और भाजपा बड़ी बढ़त बनाने में कामयाब होती है तो फिर इसे समग्र प्रयास की जीत माना जाएगा। उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में भी इसका असर दिखेगा। बिहार में जिस प्रकार से विपक्ष एकजुट नजर आया और फिर भी अगर जीत नहीं मिलती है तो फिर यूपी में स्थिति को बदलने के लिए अखिलेश यादव को रणनीति में बदलाव करना होगा।
राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि यह चुनाव 2027 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल साबित हो सकता है। बिहार की धरती पर लड़ी जा रही यह जंग अब यूपी की राजनीति की धड़कन बढ़ा चुकी है। इस बीच बिहार चुनाव के एक्जिट पोल रिजल्ट ने 14 नवंबर को जारी होने वाले चुनाव परिणाम से पहले एक तस्वीर खींचने की कोशिश की है। इससे साफ हो रहा है कि विपक्षी एकता के तमाम प्रयासों के बाद भी नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार एक बार फिर सत्ता में लौटने वाली है। ऐसे में योगी आदित्यनाथ सपा अध्यक्ष पर बढ़त बनाते दिख रहे हैं।
बिहार में अखिलेश बनाम योगीबिहार के रण में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव दोनों ने अपने-अपने मोर्चे खोल दिए। सीएम योगी ने पिछले 10 दिनों में 30 जनसभाएं और एक रोड शो किया। इनमें उन्होंने एनडीए के घटक दलों जेडीयू, एलजेपी (रामविलास), हम और आरएलएम के कुल 43 उम्मीदवारों के लिए वोट मांगे।
वहीं, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 7 दिनों में 28 सभाएं कीं। इनमें उन्होंने महागठबंधन के प्रत्याशियों के लिए समर्थन मांगा। वह राजद, कांग्रेस, वामपंथी दल या वीआईपी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए वोट मांगते दिखे।
योगी का बुलडोजर मॉडल मुद्दाबिहार की रैलियों में योगी आदित्यनाथ का बुलडोजर मॉडल मुख्य मुद्दा बना रहा। उन्होंने यूपी में अपराधियों और माफिया पर की गई सख्त कार्रवाई को अपना मुख्य चुनावी हथियार बनाया। सीएम योगी ने हर सभा में यह संदेश दिया कि जो भारत की सुरक्षा में सेंध लगाएगा, वह यमराज का टिकट लेकर जाएगा। योगी ने कहा कि बिहार को भी अपराध और माफिया से मुक्त होना होगा। ठीक उसी तरह जैसे उत्तर प्रदेश में बुलडोजर ने कानून का राज कायम किया।
सीएम योगी की रैलियां केवल बीजेपी नहीं बल्कि जेडीयू और एनडीए के अन्य दलों के पक्ष में भी थीं। इसे यूपी के राजनीतिक समीकरणों से जोड़कर देखा जा रहा है। योगी का यह अभियान ओबीसी और दलित वोट बैंक को दोबारा एकजुट करने की कोशिश भी माना जा रहा है, क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इसी तबके से सबसे बड़ा नुकसान हुआ था।
अखिलेश यादव का बदलाव वाला प्रचारअखिलेश यादव ने बिहार की जनता से अपील की कि अगर बिहार में बदलाव आया तो देश की राजनीति का रास्ता भी बदलेगा। उन्होंने कहा कि 2024 में समाजवादियों ने यूपी में बीजेपी को अवध और अयोध्या में हराया, अब बिहार के मगध में भी हराएंगे। अखिलेश ने अपने भाषणों में केंद्र की मोदी सरकार और यूपी की योगी सरकार दोनों पर सीधा हमला बोला। उन्होंने बीजेपी पर झूठ बोलने और नफरत फैलाने का आरोप लगाया। साथ ही, उन्होंने कहा कि यह चुनाव महागठबंधन के ज़रिए जनता के आत्मसम्मान की लड़ाई है।
सपा की पूरी फौज मैदान में उतरीहालांकि, सपा बिहार की किसी सीट पर चुनाव नहीं लड़ रही, लेकिन अखिलेश यादव ने अपने सभी दिग्गजों को मैदान में उतार दिया। अवधेश प्रसाद के साथ अखिलेश ने मगध और शाहाबाद क्षेत्र की कमान संभाली। इकरा हसन को सीमांचल के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी गई। अफजाल अंसारी यूपी से सटी हुई सीटों पर प्रचार करते दिखे। राजीव राय, ओमप्रकाश सिंह, आशु मलिक, जयप्रकाश अंचल और अन्य नेताओं ने अपने-अपने जातीय और क्षेत्रीय आधारों पर प्रचार किया।
अखिलेश यादव का उद्देश्य साफ था कि महागठबंधन को मजबूती देना, ओवैसी के प्रभाव को सीमांचल में कम करना और यूपी में भविष्य की राजनीतिक जमीन तैयार करना। सपा अध्यक्ष की कोशिश पीडीए पॉलिटिक्स को धार देकर यूपी से बाहर भी पार्टी का प्रभाव क्षेत्र बनाना है।
ओवैसी के प्रभाव को रोकने की रणनीति2020 में सीमांचल की पांच सीटें जीतने वाले असदुद्दीन ओवैसी इस बार भी मुस्लिम वोटों पर नजर गड़ाए हुए हैं। लेकिन, इस बार अखिलेश यादव ने इकरा हसन और अफजाल अंसारी जैसे सशक्त मुस्लिम चेहरों को सामने लाकर ओवैसी के प्रभाव को रोकने की रणनीति बनाई। इकरा हसन ने अपने भाषणों में कहा कि अगर वोट बंटे तो बीजेपी फिर से सत्ता में आएगी। इसलिए हमें एकजुट होकर महागठबंधन को जीताना होगा।
वहीं, अफजाल अंसारी ने तीखे लहजे में कहा कि ओवैसी वही काम कर रहे हैं जो आरएसएस कर रही है, मुसलमानों को बांटने का। दरअसल, बिहार की 34 सीटें यूपी की सीमा से सटी हैं। महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, बलिया, गाजीपुर, चंदौली और सोनभद्र जैसे जिलों की सीमाएं बिहार के सारण, सीवान, गोपालगंज, भोजपुर, बक्सर, कैमूर और पश्चिम चंपारण से लगती हैं।
रिजल्ट का दिखेगा यूपी में असरराजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में एनडीए की जीत से बीजेपी को यूपी में 2027 के लिए नई ऊर्जा मिलेगी। लोकसभा चुनाव के बाद गिरे मनोबल को दोबारा खड़ा करने में मदद मिलेगी। वहीं, अगर महागठबंधन को जीत मिलती है तो अखिलेश यादव की राजनीतिक जमीन मजबूत होगी। यूपी चुनाव 2027 में उनकी वापसी की राह आसान बन सकती है। अखिलेश का यह भी मकसद है कि ओवैसी जैसे दलों को बिहार में रोका जाए ताकि यूपी में मुस्लिम वोटों का बिखराव न हो।
एक्जिट पोल में एनडीए को बढ़तएक्जिट पोल रिजल्ट में एनडीए को एक बार फिर बढ़त मिलती दिख रही है। सीएम योगी आदित्यनाथ के बिहार में किए गए ताबड़तोड़ चुनाव प्रचार से भी इस बढ़त को देखा जा रहा है। अगर एनडीए और भाजपा बड़ी बढ़त बनाने में कामयाब होती है तो फिर इसे समग्र प्रयास की जीत माना जाएगा। उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में भी इसका असर दिखेगा। बिहार में जिस प्रकार से विपक्ष एकजुट नजर आया और फिर भी अगर जीत नहीं मिलती है तो फिर यूपी में स्थिति को बदलने के लिए अखिलेश यादव को रणनीति में बदलाव करना होगा।
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