कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को व्रत, पूजा, तर्पण आदि का अनन्त फल होता है और वह अक्षय हो जाता है इसलिए इसका नाम ‘ अक्षय नवमी ’ है। इस दिन गो, पृथ्वी, सोना और वस्त्राभूषण का दान करने से ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी मिट जाते हैं। इस पर्व को ‘धात्री नवमी’ और ‘कूष्माण्डानवमी’ भी कहते हैं। इस दिन प्रातः स्नानादि करके आँवले के वृक्ष के नीचे पूर्व की ओर मुख करके बैठकर षोडशोपचार या पंचोपचार पूजन करके वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराकर उसके चारों ओर सूत लपेटकर कपूर या घी युक्त बत्ती से आरती कर वृक्ष की 108 परिक्रमा की जाती है। इस दिन कोई भी दान-पुण्य आदि शुभ कार्य करने पर वह अक्षय हो जाता है और नवमी के दिन यह क्रिया होती है, अतः इसे अक्षय नवमी कहा जाता है।
इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान-दक्षिणा भी देनी चाहिए तथा आंवले का भी दान करना चाहिए। आंवले के वृक्ष पर देवताओं और ब्रह्माजी का निवास माना जाता है। अक्षय नवमी, कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन कुमारियां घी-गुड़ से इसकी पूजा करती हैं तथा कच्चे सूत के साथ परिक्रमा करती हैं। ब्रह्मा जी के नेत्रों से जिस वृक्ष की उत्पत्ति हुई, उसका फल संसार के लिए अमृत समान है, उसकी पूजा का भी विशेष विधान एवं महत्व है। भारतीय संस्कृति में वृक्षों का विशेष महत्व है, पुराणों तथा धार्मिक ग्रंथों में पेड़- पौधों को बड़ा पवित्र और देवस्रूप माना गया है। देवतत्त्व के रुप में तुलसी, दूब, पीपल, वट, आंंवला आदि वृक्ष को विशेष महत्वपूर्ण माना गया है। आंवले को अमृत फल कहा जाता है।
इसकी गणना संसार के प्राचीनतम् देव वृक्षों में की जाती है। स्कन्दपुराण के अनुसार ‘आदिसृष्टि की उत्पत्ति के समय जब ब्रह्मा जी ध्यान मग्न थे, उस समय उनके नेत्रों से जो प्रेमाश्रु टपके उसी से आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति हुई, उसके बाद देवता प्रकट हुए। तभी आकाशवाणी हुई, देवताओं! सभी वृक्षों में श्रेष्ठ श्री हरि को अतिप्रिय सब पापों का हरण करने वाला यह आंवले का वृक्ष है।’ गंगा और तुलसी की तरह आंवले में भी पाप नष्ट करने की शक्ति है।
इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान-दक्षिणा भी देनी चाहिए तथा आंवले का भी दान करना चाहिए। आंवले के वृक्ष पर देवताओं और ब्रह्माजी का निवास माना जाता है। अक्षय नवमी, कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन कुमारियां घी-गुड़ से इसकी पूजा करती हैं तथा कच्चे सूत के साथ परिक्रमा करती हैं। ब्रह्मा जी के नेत्रों से जिस वृक्ष की उत्पत्ति हुई, उसका फल संसार के लिए अमृत समान है, उसकी पूजा का भी विशेष विधान एवं महत्व है। भारतीय संस्कृति में वृक्षों का विशेष महत्व है, पुराणों तथा धार्मिक ग्रंथों में पेड़- पौधों को बड़ा पवित्र और देवस्रूप माना गया है। देवतत्त्व के रुप में तुलसी, दूब, पीपल, वट, आंंवला आदि वृक्ष को विशेष महत्वपूर्ण माना गया है। आंवले को अमृत फल कहा जाता है।
इसकी गणना संसार के प्राचीनतम् देव वृक्षों में की जाती है। स्कन्दपुराण के अनुसार ‘आदिसृष्टि की उत्पत्ति के समय जब ब्रह्मा जी ध्यान मग्न थे, उस समय उनके नेत्रों से जो प्रेमाश्रु टपके उसी से आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति हुई, उसके बाद देवता प्रकट हुए। तभी आकाशवाणी हुई, देवताओं! सभी वृक्षों में श्रेष्ठ श्री हरि को अतिप्रिय सब पापों का हरण करने वाला यह आंवले का वृक्ष है।’ गंगा और तुलसी की तरह आंवले में भी पाप नष्ट करने की शक्ति है।
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