रायपुर: छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में मंगलवार को EOW (आर्थिक अपराध शाखा) ने रायपुर कोर्ट में छठवां आरोप पत्र दाखिल किया है। यह आरोप पत्र जांच में विदेशी शराब पर लिए गए कमीशन पर आधारित है। इस चार्जशीट में कई बातों का जिक्र किया गया है। आरोप पत्र में पहली बार छत्तीसगढ़ की तत्कालीन कैबिनेट का जिक्र किया गया है। उसमें बताया गया है कि शराब सिंडिकेट ने कैसे अपने प्रभाव के कारण कैबिनेट से नई आबकारी नीति को लागू करवाया था।
आरोप पत्र में लिखा है जैसा कि पहले जांच में यह स्पष्ट हुआ था कि तत्कालीन समय में आबकारी विभाग में एक सिंडिकेट एक्टिव था। जिसमें प्रशासनिक अधिकारी अनिल टुटेजा, अरुण पति त्रिपाठी, निरंजन दास के साथ अनवर ढेबर शामिल थे। इसके अलावा विकास अग्रवाल और अरविंद सिंह जैसे लोग भी इस सिंडिकेट में शामिल थे। जिनके नियंत्रण में विभाग में कमीशन की अवैध गतिविधियां संचालित हो रही थी। शासकीय शराब दुकानों में बिक्री किए जा रहे शराब की सप्लाई पर प्रति पेटी कमीशन मिल रहा था।
क्या लिखा है आरोप पत्र में
आर्थिक अपराध शाखा की रिपोर्ट के अनुसार, जांच में यह स्पष्ट हुआ है कि कुछ विदेशी सप्लायर कंपनियां उनके द्वारा सप्लाई किए जा रहे शराब पर सिंडिकेट को नगदी में कमीशन देने के लिए तैयार नगीं थीं। इस अड़चन को दूर करने के लिए सिंडिकेट के सद्सयों ने उच्च स्तरीय राजनैतिक प्रभाव एवं षड्यंत्र के तहत राजकोष में हानि के साथ-साथ निजी व्यक्तियों और एंजेंसियों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकारी नियमों को दरकिनार कर नई आबकारी नीति को लागू करवाया था।
तीन कंपनियों को ही मिलता था ठेका
आरोपपत्र में कहा गया कि नई आबकारी नीति के तहत केवल शऱाब सिंडिकेट से जुड़ी तीन कंपनियों को ठेका मिलता था। इन तीन कंपनियों में ओम साइ बेवरेज प्राइवेट लिमिटेड, अतुल सिंह और मुकेश मनचंदा की थी। जिसमें राजनीतिक प्रेरित व्यक्ति विजय कुमार भाटिया को कंपनी में छुपा हुआ लाभार्थी बनाया गया था। कंपनी के लाभ का 60 फीसदी हिस्सा सिंडिकेट को दिए जाने के बाद बचे 40 फीसदी हिस्से में से 52 फीसदी विजय भाटिया का होता था। विजय भाटिया ने अपनी जगह पर कुछ अन्य लोगों को कंपनी में डमी डायरेक्टर बनाया और कंपनी से वेतन के रूप में और 16 से अधिक खातों में कंपनी से अपने लाभ के हिस्से को प्राप्त किया।
दूसरी कंपनी कौन थी
जिन तीन कंपनियों को लाइसेंस दिया गया था उसमें एक अन्य कंपनी नेक्सजेन पावर इजीटेक प्राइवेट लिमिटेड थी। इस कंपनी का वास्तविक स्वामी संजय मिश्रा था। जो चार्टर्ड अकाउंटेंट है, जो शासकीय शराब दुकानों में ऑडिट के कार्य से जुड़ा हुआ था। सिंडिकेट के अनवर ढेबर के साथ ही अन्य लोगों को इस आबकारी घोटाले में अवैध तरीके से धन को बैंकिंग चैनल के माध्यम से वैध दिखाने और उसके इन्वेस्टमेंट में तकनीकी सलाहकार के रूप में मदद करता था।
तीसरी कंपनी दीशिता वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड जो कि विदेशी शराब दुकान के पुराने प्रमोटर आशीष सौरभ केडिया की है, उसे लाइसेंस दिया गया था। इन कंपनियों को नई आबकारी नीति के तहत लाइसेंस दिए जाने से शासन के राजस्व में न्यूनतम 248 करोड़ रुपए का नुकसान होना पाया गया।
आरोप पत्र में लिखा है जैसा कि पहले जांच में यह स्पष्ट हुआ था कि तत्कालीन समय में आबकारी विभाग में एक सिंडिकेट एक्टिव था। जिसमें प्रशासनिक अधिकारी अनिल टुटेजा, अरुण पति त्रिपाठी, निरंजन दास के साथ अनवर ढेबर शामिल थे। इसके अलावा विकास अग्रवाल और अरविंद सिंह जैसे लोग भी इस सिंडिकेट में शामिल थे। जिनके नियंत्रण में विभाग में कमीशन की अवैध गतिविधियां संचालित हो रही थी। शासकीय शराब दुकानों में बिक्री किए जा रहे शराब की सप्लाई पर प्रति पेटी कमीशन मिल रहा था।
क्या लिखा है आरोप पत्र में
आर्थिक अपराध शाखा की रिपोर्ट के अनुसार, जांच में यह स्पष्ट हुआ है कि कुछ विदेशी सप्लायर कंपनियां उनके द्वारा सप्लाई किए जा रहे शराब पर सिंडिकेट को नगदी में कमीशन देने के लिए तैयार नगीं थीं। इस अड़चन को दूर करने के लिए सिंडिकेट के सद्सयों ने उच्च स्तरीय राजनैतिक प्रभाव एवं षड्यंत्र के तहत राजकोष में हानि के साथ-साथ निजी व्यक्तियों और एंजेंसियों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकारी नियमों को दरकिनार कर नई आबकारी नीति को लागू करवाया था।
तीन कंपनियों को ही मिलता था ठेका
आरोपपत्र में कहा गया कि नई आबकारी नीति के तहत केवल शऱाब सिंडिकेट से जुड़ी तीन कंपनियों को ठेका मिलता था। इन तीन कंपनियों में ओम साइ बेवरेज प्राइवेट लिमिटेड, अतुल सिंह और मुकेश मनचंदा की थी। जिसमें राजनीतिक प्रेरित व्यक्ति विजय कुमार भाटिया को कंपनी में छुपा हुआ लाभार्थी बनाया गया था। कंपनी के लाभ का 60 फीसदी हिस्सा सिंडिकेट को दिए जाने के बाद बचे 40 फीसदी हिस्से में से 52 फीसदी विजय भाटिया का होता था। विजय भाटिया ने अपनी जगह पर कुछ अन्य लोगों को कंपनी में डमी डायरेक्टर बनाया और कंपनी से वेतन के रूप में और 16 से अधिक खातों में कंपनी से अपने लाभ के हिस्से को प्राप्त किया।
दूसरी कंपनी कौन थी
जिन तीन कंपनियों को लाइसेंस दिया गया था उसमें एक अन्य कंपनी नेक्सजेन पावर इजीटेक प्राइवेट लिमिटेड थी। इस कंपनी का वास्तविक स्वामी संजय मिश्रा था। जो चार्टर्ड अकाउंटेंट है, जो शासकीय शराब दुकानों में ऑडिट के कार्य से जुड़ा हुआ था। सिंडिकेट के अनवर ढेबर के साथ ही अन्य लोगों को इस आबकारी घोटाले में अवैध तरीके से धन को बैंकिंग चैनल के माध्यम से वैध दिखाने और उसके इन्वेस्टमेंट में तकनीकी सलाहकार के रूप में मदद करता था।
तीसरी कंपनी दीशिता वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड जो कि विदेशी शराब दुकान के पुराने प्रमोटर आशीष सौरभ केडिया की है, उसे लाइसेंस दिया गया था। इन कंपनियों को नई आबकारी नीति के तहत लाइसेंस दिए जाने से शासन के राजस्व में न्यूनतम 248 करोड़ रुपए का नुकसान होना पाया गया।
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