बकरीद (ईद उल अजहा) के मौके पर जहां एक ओर मुस्लिम समुदाय इसकी तैयारी में जुटा है, वहीं दूसरी ओर बागेश्वर धाम सरकार के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का बलि प्रथा और इस पर्व को लेकर दिया गया बयान चर्चा का विषय बन गया है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि "जीव हिंसा किसी भी धर्म में हो, वह निंदनीय है।" उन्होंने बकरीद पर दी जाने वाली बकरे की कुर्बानी का विरोध करते हुए यह कहा कि "हम बलि प्रथा के पक्ष में नहीं हैं और न ही बकरीद के पक्ष में हैं। यदि हम किसी को जीवन देने में सक्षम नहीं हैं तो हमें उसे मारने का कोई अधिकार नहीं है।"
धीरेंद्र शास्त्री ने क्या कहा?
धीरेंद्र शास्त्री ने आगे कहा कि संभव है कि किसी विशेष समय या परिस्थिति में बलि की परंपरा रही हो, लेकिन अब समय बदल गया है, और ऐसी हिंसात्मक परंपराओं को रोका जाना चाहिए। उन्होंने यह भी जोड़ा कि केवल इस्लाम धर्म ही नहीं, सनातन धर्म में भी जहां-जहां बलि की परंपरा है, उसे बंद किया जाना चाहिए। उन्होंने सनातन संस्कृति में व्याप्त हिंसा के किसी भी रूप की आलोचना करते हुए अहिंसा को सभी धर्मों की आत्मा बताया। उनका यह भी कहना था कि "यदि हम अहिंसा के मार्ग पर चलें, तो समाज और धर्म दोनों ही अधिक संवेदनशील और स्वस्थ बन सकते हैं। हर जीव को जीने का अधिकार है। हमें हिंसा के मार्ग पर नहीं, बल्कि सहअस्तित्व की भावना के साथ चलना चाहिए।"
भारत में कब मनाई जाएगी बकरीद?
इस्लामिक पंचांग के अनुसार, बकरीद जिल हिज्जा महीने की 10वीं तारीख को मनाई जाती है। सऊदी अरब में चांद दिखाई देने के आधार पर 6 जून को बकरीद मनाई जाएगी, जबकि भारत में 7 जून (शनिवार) को यह पर्व मनाया जाएगा। भारत में यह तिथि 28 मई की शाम को चांद नजर आने के बाद तय हुई है।
बकरीद का धार्मिक महत्व
बकरीद को केवल कुर्बानी का पर्व नहीं, बल्कि अल्लाह के प्रति समर्पण, त्याग और इंसानियत की भावना का प्रतीक माना जाता है। मुस्लिम समुदाय इस पर्व को पूरी श्रद्धा, आस्था और उत्साह के साथ मनाता है। इस्लाम धर्म की मान्यता के अनुसार, अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की आस्था की परीक्षा लेने के लिए उन्हें अपनी सबसे प्रिय वस्तु की कुर्बानी देने को कहा था। हजरत इब्राहिम के लिए उनके पुत्र हजरत इस्माइल सबसे प्रिय थे। वे अल्लाह के हुक्म को मानते हुए अपने पुत्र को कुर्बान करने को तैयार हो गए। लेकिन जैसे ही उन्होंने बेटे की गर्दन पर छुरी चलाई, अल्लाह ने एक चमत्कार कर दिया। हजरत इस्माइल की जगह एक जानवर आ गया और वही कुर्बान हुआ। इसी घटना की स्मृति में हर साल बकरीद पर जानवर की कुर्बानी दी जाती है ताकि अल्लाह के प्रति समर्पण और त्याग की भावना जीवित रखी जा सके।
धीरेंद्र शास्त्री के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर इसकी काफी चर्चा हो रही है, जहां लोग इसे लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया दे रहे हैं। कुछ लोग इसे सभी धर्मों के प्रति समभाव का संदेश मान रहे हैं, तो कुछ इसे धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ भी कह रहे हैं। बावजूद इसके, शास्त्री का यह बयान समाज में अहिंसा और सहअस्तित्व की एक नई बहस को जन्म दे रहा है।
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