कोलकाता, 29 सितंबर . अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर मां दुर्गा की पूजा का विशेष आयोजन शुरू हुआ, जिसमें कोला बऊ स्नान की परंपरा ने सभी का ध्यान आकर्षित किया.
दुर्गा पूजा का त्योहार लगभग दस दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें पांच मुख्य दिन, महाषष्ठी, महासप्तमी, महाअष्टमी, महानवमी और विजयदशमी, महत्व रखते हैं.
महासप्तमी को सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में कोला बऊ (केले का पौधा) को स्नान कराया जाता है. यह दुर्गा पूजा का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसमें एक केले के पौधे को लाल धोती और सिंदूर पहनाकर दुल्हन की तरह सजाया जाता है और गंगा या किसी जलाशय में स्नान कराया जाता है.
इस अनुष्ठान के बाद, कोला बऊ नवपत्रिका (नौ पौधों) के हिस्से के रूप में दुर्गा पूजा पंडाल में गणेश के बगल में स्थापित की जाती है.
इस बीच Monday को गंगा नदी के तट पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी. यहां से गंगा के पवित्र जल से भरे मिट्टी के कुल्हड़ मंदिरों में लाए गए. इसके बाद शहर के तमाम मंदिरों और पंडालों में मां दुर्गा की मूर्तियों की विशेष पूजा और आह्वान किया गया.
मंत्रोच्चार और ढाक की थाप के बीच भक्तों ने मां की आराधना की. कई स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम और भक्ति भजनों का आयोजन भी होता है.
हिंदू मान्यता के अनुसार, इस दिन माता की पूजा करने से साधक के जीवन से जुड़ी सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं. इस अनुष्ठान को मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और Odisha जैसे राज्यों में मनाया जाता है.
यह उत्सव न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है. भक्तों में उत्साह और श्रद्धा का माहौल है.
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एनएस/एबीएम
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