काबुल, 20 सितंबर . अफगानिस्तान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अमेरिकी President डोनाल्ड ट्रंप द्वारा बगराम एयरबेस दोबारा कब्जे में लेने संबंधी बयान की कड़ी आलोचना की है. उन्होंने कहा कि अफगान जनता कभी भी अपने देश में विदेशी सैन्य उपस्थिति को स्वीकार नहीं करेगी. यह जानकारी Governmentी प्रसारण संस्था रेडियो एंड टेलीविजन ऑफ अफगानिस्तान (आरटीए) ने दी.
विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ राजनयिक जलाली के हवाले से आरटीए ने कहा, “अफगान इतिहास गवाह है कि यहां की जनता ने कभी विदेशी सैन्य उपस्थिति स्वीकार नहीं की. अफगानिस्तान और अमेरिका के बीच आर्थिक और Political संबंधों की ज़रूरत है, जो आपसी सम्मान और साझा हितों पर आधारित हों.”
दरअसल, ट्रंप ने पूर्व President बाइडेन पर 2021 में अमेरिकी सेना की वापसी के दौरान बगराम एयरबेस छोड़ने को लेकर आलोचना की थी. उन्होंने Thursday को लंदन में पत्रकारों से कहा था, “हम इसे (बगराम एयरबेस) वापस लेना चाहते हैं.”
काबुल से 50 किलोमीटर उत्तर में स्थित बगराम एयरबेस अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना का मुख्य ठिकाना था. यहां से अमेरिका और उसके सहयोगी 20 साल तक संचालित होते रहे. अगस्त 2021 में सेना की वापसी के साथ ही अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन का अध्याय समाप्त हुआ और मौजूदा अफगान शासन के हाथों सत्ता का हस्तांतरण हुआ.
इसी बीच, जब पूरी दुनिया 21 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस मनाने की तैयारी कर रही है, तब युद्ध और अस्थिरता से जूझ रहे अफगान नागरिकों की सबसे बड़ी कामना स्थायी शांति है.
पिछले चार दशकों से चले आ रहे युद्ध ने अफगानिस्तान को न केवल अविकसित और गरीब बना दिया है, बल्कि वहां की आम जनता के जीवन को भी कठिन बना दिया है.
काबुल के एक बेकरी मालिक और छह बच्चों के पिता अब्दुल कादुस रहमानी ने कहा, “मेरी सिर्फ एक ही इच्छा है कि अफगानिस्तान में स्थायी शांति और सुरक्षा हो, शरणार्थी लौटें और देश के पुनर्निर्माण में योगदान दें.”
उन्होंने बताया कि उनके रोज़ाना की रोटी बिक्री भी शांति और अस्थिरता का आईना है. जब युद्ध होता है, तो मैं दिन में 200-300 रोटियां बेच पाता हूं. लेकिन शांतिपूर्ण माहौल में मैं 1,000-1,500 बेचकर अच्छी कमाई करता हूं.
अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस से पहले अफगान जनता का यह संदेश साफ है कि उनके लिए शांति कोई सैद्धांतिक विचार नहीं, बल्कि काम, शिक्षा और सम्मान की बुनियाद है. दशकों की कठिनाइयों के बावजूद उनकी सबसे बड़ी आशा स्थायी शांति ही है.
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डीएससी
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