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बर्थ डे स्पेशल: बिना फिल्म स्कूल के, मेहनत और जुनून के बूते कमाया नाम, अभिषेक कपूर बने सफलता की मिसाल

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Mumbai , 5 अगस्त . फिल्म इंडस्ट्री में सफल होने के लिए अक्सर लोग सोचते हैं कि एक्टिंग सीखने के लिए किसी फिल्म स्कूल में जाना जरूरी है. लेकिन कुछ ऐसे कलाकार और निर्देशक भी होते हैं, जिन्हें इसकी जरूरत नहीं पड़ी. सिर्फ मेहनत और टैलेंट के बूते अपनी खास पहचान बनाई. इन्हीं में से एक हैं अभिषेक कपूर, निर्देशक जिनका सफर इस बात का सबूत है कि अगर आप जुनूनी हैं, मेहनती हैं, और अपने काम के प्रति ईमानदार हैं, तो किसी भी मुश्किल को पार कर सफलता हासिल कर सकते हैं.

अभिषेक कपूर का जन्म 6 अगस्त 1971 को हुआ. वह एक साधारण परिवार में बड़े हुए, लेकिन फिल्म बनाने का सपना देखते रहे. वह बॉलीवुड के उन कम लोगों में से हैं जिन्होंने कोई औपचारिक फिल्म स्कूल की पढ़ाई नहीं की, फिर भी उन्होंने हिंदी सिनेमा में अपनी एक खास जगह बनाई. उन्होंने खुद की मेहनत और अनुभव से फिल्मों की दुनिया में नाम कमाया.

अभिषेक ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत 1995 में मोनिका बेदी के साथ फिल्म ‘आशिक मस्ताने’ से की और इसके बाद ‘उफ्फ! ये मोहब्बत’ में नजर आए. दोनों की फिल्म कुछ खास कमाल नहीं कर पाई. इस असफलता से उन्हें समझ आ गया कि वह एक अभिनेता के तौर पर अपने करियर को आगे नहीं बढ़ा सकते. इसके बाद उन्होंने अपनी किस्मत को निर्देशक और लेखक के तौर पर आजमाने की कोशिश की और 2006 में सोहेल खान और स्नेहा उल्लाल की लीड रोल वाली स्पोर्ट्स ड्रामा ‘आर्यन: अनब्रेकेबल’ से निर्देशन शुरू किया. यह फिल्म लोगों को पसंद आई, लेकिन उम्मीद के मुताबिक सफलता हासिल नहीं कर सकी.

2008 में आई म्यूजिकल ड्रामा ‘रॉक ऑन!’ से अभिषेक कपूर को लोकप्रियता हासिल हुई. यह फिल्म भारतीय सिनेमा में म्यूजिकल ड्रामा की एक नई मिसाल बनी. फिल्म की कहानी, संगीत और कलाकारों के अभिनय को काफी पसंद किया गया. इस फिल्म के लिए उन्हें हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला. इसके साथ ही फिल्मफेयर पुरस्कार में ‘रॉक ऑन!’ को सर्वश्रेष्ठ कहानी का पुरस्कार दिया गया. इतना ही नहीं, इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म, निर्देशक और पटकथा के लिए भी नामांकित किया गया. इस सफलता ने साबित कर दिया कि फिल्म स्कूल की डिग्री ना होना करियर में कोई बड़ी बाधा नहीं बनती, अगर आपकी मेहनत और कला मजबूत हो तो आप चमक सकते हैं.

2013 में अभिषेक ने चेतन भगत के उपन्यास ‘द 3 मिस्टेक्स ऑफ माई लाइफ’ पर बनी फिल्म ‘काई पो चे!’ का निर्देशन और लेखन किया. यह फिल्म दोस्ती, राजनीति और समाज के मुद्दों को अच्छे ढंग से दिखाती है. ‘काई पो चे!’ को दुनिया के बड़े फिल्म महोत्सव बर्लिन में भी दिखाया गया और इसे आलोचकों ने भी सराहा. इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर शानदार कमाई की. फिल्म के लिए अभिषेक को फिल्मफेयर पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ पटकथा का पुरस्कार भी मिला.

2016 में उन्होंने चार्ल्स डिकेंस की मशहूर किताब ‘ग्रेट एक्सपेक्टेशंस’ का रूपांतरण ‘फितूर’ बनाया. इसमें तब्बू, कैटरीना कैफ और आदित्य रॉय कपूर मुख्य किरदार में नजर आए थे.

2018 में उन्होंने ‘केदारनाथ’ का निर्देशन किया, जो 2013 में उत्तराखंड में आई बाढ़ के दौरान बनी एक अंतर-धार्मिक प्रेम कहानी थी. इस फिल्म में सुंशात सिंह राजपूत और सारा अली खान थे. ‘केदारनाथ’ बॉक्स ऑफिस पर सफल रही और आलोचकों से भी अच्छी प्रतिक्रिया मिली.

2021 में उन्होंने ‘चंडीगढ़ करे आशिकी’ नाम की फिल्म बनाई, जो एक जिम ट्रेनर की कहानी है, जिसे एक ट्रांसजेंडर महिला से प्यार हो जाता है. इस फिल्म को भी आलोचकों ने पसंद किया और यह औसत व्यावसायिक सफलता हासिल करने में कामयाब रही. इसके लिए अभिषेक को फिल्मफेयर पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ कहानी का दूसरा पुरस्कार मिला. उन्होंने अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी, ‘गाइ इन द स्काई पिक्चर्स’ भी शुरू की.

अभिषेक कपूर के सफर को देखकर एक बात साफ है कि सफलता पाने के लिए औपचारिक पढ़ाई से ज्यादा जरूरी है आपकी मेहनत, लगन और सही सोच.

पीके/केआर

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