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Kullu Dussehra: न रावण दहन, न रामलीला, फिर भी अयोध्या से कनेक्शन… जानें क्यों खास है कुल्लू दशहरा मेला

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कुल्लू दशहरा सदियों से मनाया जाता रहा है और यह अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है. हालांकि दशहरा देश के कई राज्यों में मनाया जाता है लेकिन कुल्लू दशहरा (Kullu Dussehra Festival) बहुत ही खास है. यह सप्ताह भर चलने वाला मेला है, जिसमें स्थानीय लोगों के अलावा देवताओं के भव्य जुलूस, सांस्कृतिक कार्यक्रम, जैसे लोक संगीत, नृत्य और कला प्रदर्शन, हस्तशिल्प और स्थानीय बाजार, जो कारीगरों और व्यापारियों का समर्थन करते हैं. कुल्लू दशहरा उत्सव सामाजिक समरसता, जनसांस्कृतिक संबंध और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है और राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करता है.

कुल्लू का दशहरा हिमाचल की संस्कृति, परंपरा, रीति-रिवाज और ऐतिहासिक नजर से बेहद अहम माना जाता है. भगवान रघुनाथ की भव्य रथयात्रा से दशहरा मेले री शुरुआत होती. इस बार यह आयोजन 3 अक्टूर से शुरू होगा और 8 अक्टूबर तक चलेगा. सभी स्थानीय देवी-देवता ढोल-नगाड़ों की धुनों पर देव मिलन में आते हैं. हर साल देव मिलने के लिए स्थानीय देवी देवताओं को निमंत्रण दिया जाता है. दरअसल हिमाचल के लगभग हर गांव का अलग देवता होता है. लोगों का मानना है कि बर्फीली ठंड और सीमित संसाधनों के बावजूद वे इन पहाड़ों पर देवताओं की कृपा से शान से अपना जीवन गुजार रहे हैं.

कैसे हुई कुल्लू दशहरे की शुरुआत?

ऐसा दावा किया जाता है कि यह दशहरा मेला सबसे प्राचीन है. कुल्लू के ढालपुर मैदान में दशहरा पहली बार 1662 में आयोजित किया गया था. उस दौरान ये सिर्फ देव परंपराओं से ही यह पर्व शुरू हुआ था. न तो कोई व्यापार था और ना ही किसी तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए थे. कहा जाता है कि 1650 के दौरान कुल्लू के राजा जगत सिंह को भयंकर बीमारी से ग्रसित हो गए थे. ऐसे में पयहारी नाम के बाबा ने उन्हें बताया कि अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर से भगवान रघुनाथ की मूर्ति लाकर उसके चरणामृत से ही बीमारी का इलाज संभव है.

गौरतबल है कि इसके लिए राजा जगत सिहं ने कड़े संघर्षों के बाद रघुनाथजी की मूर्ति को कुल्लू में स्थापित किया. इसके बाद राजा जगत सिंह ने सभी स्थानीय देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, जिन्होंने भगवान रघुनाथजी को सबसे बड़ा देवता माना. इसी दौरान देव मिलन का प्रतीक दशहरा उत्सव शुरू हुआ और यह आज तक जारी है.

सात दिन होता है भव्य आयोजन

वहीं अब अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा का भव्य आयोजन धौलपुर के मैदान में किया जाता है और यह उगते चंद्रमा के 10वें दिन से आरंभ होता है और 7 दिनों तक चलता है. उत्सव के पहले दिन दशहरे की देवी और मनाली की हिंडिबा कुल्लू आती हैं और भक्तों को दर्शन देती हैं. इस दौरान राजघराने के सभी सदस्य और देवी देवता आशीर्वाद लेने के लिए मेले में पहुंचते हैं. 7 दिन तक आयोजित होने वाले में हर दिन लोगों को अलग-अलग परंपरा देखने को मिलती है.

सुरक्षा के कड़े इंतजाम

वहीं पुलिस महानिदेशक अशोक तिवारी ने कुल्लू दशहरा (Kullu Dussehra) में सुरक्षा व्यवस्था और यातायात को लेकर पुलिस अधिकारियों को अहम निर्देश दिए हैं. डीजीपी ने पुलिस अधिकारियों को सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम करने को कहा है. डीजीपी अशोक तिवारी ने कहा कि कुल्लू दशहरा में हर साल देश और विदेश से भारी संख्या में श्रद्धालुओं, पर्यटक आते हैं. यह केवल धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव नहीं है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है.

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