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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज नरीमन ने फिर उगला हिंदुओं के खिलाफ जहर, 'डिवाइन-बोवाइन' कहकर पूर्व CJI चंद्रचूड़ पर भी उठाई उँगली: कहा- ये संविधान का उल्लंघन

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पूर्व CJI चंद्रचूड़ की ‘राम मंदिर फैसले के लिए मार्गदर्शन को लेकर प्रार्थना करने वाली बात पर पूर्व जस्टिस नरीमन से हिन्दू विरोधी टिप्पणी की है।

न्यायपालिका के हिंदू विरोधी रुख को और पुख्ता करने वाली विवादित टिप्पणी सामने आई है।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन नरीमन ने राम मंदिर मामले को लेकर विवादित बातें कही हैं। उन्होंने हिंदुओं के पवित्र गोवंश का अनावश्यक उल्लेख किया है, साथ ही राम मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की है। नरीमन ने कहा कि निर्णयों को प्रभावित करने के लिए दैवीय या किसी अन्य प्रकार के हस्तक्षेप की अनुमति देना न्यायाधीश द्वारा संविधान के प्रति शपथ का उल्लंघन होगा।

जस्टिस नरीमन ने यह टिप्पणी 1 सितंबर 2025 को तिरुवनंतपुरम के प्रेस क्लब द्वारा आयोजित केएम बशीर स्मृति व्याख्यान के दौरान एक सवाल का जवाब देते हुए कही थी। एक व्यक्ति ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों द्वारा निर्णय सुनाते समय दैवीय हस्तक्षेप के बारे में बोलने पर उनके विचार पूछे थे। यह टिप्पणी पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के उस बयान के संदर्भ में थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्होंने 2019 में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले में फैसले के दौरान मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की थी।

न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा, “चाहे दैवीय हस्तक्षेप हो या गोवंश हस्तक्षेप या किसी भी दूसरी तरह का हस्तक्षेप। यदि कोई न्यायाधीश इसको लेकर कोई फैसला सुनाता है, तो वह संविधान के प्रति अपनी शपथ का उल्लंघन कर रहा होता है। आपको (न्यायाधीशों को) केवल संविधान और कानूनों के प्रति अपनी शपथ पर ही चलना होता है। और जब आप संविधान और कानूनों के प्रति अपनी शपथ पर चलते हैं, तो आप निश्चित रूप से अपनी नैतिकता को भी साथ लाते हैं।”

पूर्व मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ द्वारा एक महत्वपूर्ण निर्णय पर पहुँचने के लिए आस्था का सहारा लेने पर की गई उनकी टिप्पणी और हिंदुओं द्वारा पवित्र माने जाने वाले गोवंश का उल्लेख, सुप्रीम कोर्ट में गहरी जड़ें जमा चुके हिंदू विरोधी पूर्वाग्रह को रेखांकित करते हैं।

सुप्रीम कोर्ट में हिन्दू विरोधी धारणा का एक और विवादित मामले इस घटना के अगले दिन आया। भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने मुगल आक्रमणकारियों द्वारा अपवित्र की गई खजुराहो में भगवान कृष्ण की खंडित मूर्ति की पुनर्स्थापना के लिए दायर याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता का उपहास उड़ाया। उन्होंने इस दौरान तंज किया, “इसके बजाय जाओ और भगवान से प्रार्थना करो।”

धर्मनिरपेक्ष राज्य के लिए बंधुत्व जरूरी- जस्टिस नरीमन

‘सांस्कृतिक अधिकारों और कर्तव्यों का संरक्षण’ विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए न्यायमूर्ति नरीमन ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान के मूल में निहित बंधुत्व को प्राप्त करने के लिए धर्मनिरपेक्षता आवश्यक है।

उन्होंने आगे कहा कि 42वें संशोधन के जरिए प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता शब्द जोड़े जाने से पहले ही यह संविधान में मौजूद था। उन्होंने कहा, “यह कहना गलत होगा कि धर्मनिरपेक्षता सिर्फ 42वें संशोधन द्वारा ही लागू की गई। इसका कुछ हिस्सा पहले से संविधान में मौजूद था… अब मेरे हिसाब से भाईचारा हासिल करने की दिशा में धर्मनिरपेक्षता एक ज़रूरी कदम है। एक धर्मशासित राज्य में भाईचारा नहीं हो सकता।”

न्यायमूर्ति नरीमन ने अपने नए पुस्तक ‘एन ओड टू फ्रेटरनिटी’ के बारे में भी बात की। इसमें दुनिया के अलग-अलग धर्मों के बारे में बताया गया है। जस्टिस नरीमन ने कहा कि इस पुस्तक को लिखने से पहले उन्होंने कई धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया था।

सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश रोहिंटन नरीमन ने मंदिर की माँग कर रहे हिंदुओं को ‘तानाशाह-अत्याचारी’ करार दिया। उन्होंने 2019 में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर फैसला सुनाने वाली 5 न्यायाधीशों की खंडपीठ की आलोचना की और कहा कि यह फैसला ‘न्याय का मजाक’ है। इसने धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन किया है।

जस्टिस नरीमन ने कहा, “आज हम देख रहे हैं कि जैसे पूरे देश में हाइड्रा हेड्स (राक्षस) उभर रहे हैं, हर जगह मुकदमें दर्ज हो रहे हैं। अब सिर्फ मस्जिदों से ही नहीं, दरगाहों से भी। यह सब सांप्रदायिक तनाव और वैमनस्य पैदा कर सकता है, जो हमारे संविधान और पूजा स्थल अधिनियम, दोनों में निहित प्रावधानों के बिल्कुल विपरीत है। संविधान पीठ धर्मनिरपेक्षता पर पाँच पन्ने खर्च करती है और कहती है कि इसमें आप पीछे मुडकर नहीं देख सकते। धर्मनिरपेक्षता संविधान के मूल ढाँचे का हिस्सा है… हर धार्मिक पूजा स्थल 15 अगस्त 1947 के हिसाब से रहेगाह। अब, जो कोई भी इसे बदलने की कोशिश करेगा, उसके मुकदमे खारिज हो जाएँगे।”

पूर्व न्यायाधीश ने अपने अतिक्रमित और नष्ट किए गए मंदिरों को पुनः प्राप्त करने के लिए कानूनी उपाय की माँग कर रहे हिंदुओं को ‘हाइड्रा हेड्स’ घोषित किया। एक पूर्व न्यायाधीश ने कानूनी उपाय की माँग कर कानून का पालन करने वाले हिंदुओं को खलनायक बना दिया। सबूतों और योग्यता के आधार पर हिंदूओं के पक्ष में फैसला सुनाने वाले कोर्ट को उसी न्यायाधीश ने मुसलमानों के साथ ‘न्याय का मजाक’ करार दिया।

नरीमन ने विवादास्पद पूजा स्थल अधिनियम को सख्ती से लागू करने की वकालत की, ताकि मंदिरों पर फिर से अधिकार पाने के लिए कोई और मुकदमा दायर न किया जा सके। उनके भाषणों से यह संकेत मिलता था कि ‘धर्मनिरपेक्षता’ को बनाए रखने के लिए हिंदुओं को अपना दावा छोड़ देना चाहिए और चुप रहना चाहिए।

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