अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बेहतर करने की दिशा में कई मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए मंगलवार को US FED Meeting शुरू हुई. इस फेड मीटिंग में सिर्फ ब्याज दरों और अमेरिकी आर्थिक पहलुओं पर ही बात नहीं होगी, बल्कि यह की मायनों में असाधारण फेड बैठक है. निवेशकों की नज़र ब्याज दरों में कटौती से ज़्यादा फेड चेयमैन जेरोम पॉवेल के लहजे और अमेरिकी विकास व मुद्रास्फीति के आकलन पर है.
17 सितंबर बुधवार को अपनी दो दिवसीय पॉलिसी मीटिंग के समापन पर केंद्रीय बैंकरों द्वारा अमेरिका के धीमे पड़ते लेबर मार्केट को सहारा देने के लिए दिसंबर के बाद से पहली बार ब्याज दर में कटौती की घोषणा की जाने की उम्मीद है. इस रेट कट में यह उम्मीद भी शामिल है कि प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ का मुद्रास्फीति पर सीमित प्रभाव ही पड़ेगा.
फेड की इस बार की बैठक असाधारण है, न केवल इसलिए कि केंद्रीय बैंकर अंततः ब्याज दरों पर अपनी रणनीति बदल रहे हैं, बल्कि इसलिए भी कि फेड के शक्तिशाली बोर्ड को शामिल करने वाले ताज़ा घटनाक्रम हैं और यह सब तब हो रहा है जब ट्रम्प प्रशासन राजनीतिक रूप से स्वतंत्र केंद्रीय बैंक पर दबाव बनाना जारी रखे हुए है. दोनों के बीच खींचतान पुरानी है जो फेड की दो दिवसीय बैठक में भी देखने को मिल सकती है.
लेबर मार्केट की कमज़ोरी सामने आई है जिससे रेट कट की उम्मीद बढ़ गई है. अब नौकरी के अवसरों की तुलना में काम की तलाश में बेरोजगार लोगों की संख्या अधिक है. 6 सितंबर को समाप्त सप्ताह में बेरोजगारी लाभ के लिए नए आवेदन लगभग चार वर्षों में उच्चतम स्तर पर पहुंच गए और अगस्त में 26 सप्ताह से अधिक समय से बेरोजगार लोगों की संख्या नवंबर 2021 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई. ये रेट कट करने के बड़े कारणों में से एक है.
भारतीय बाज़ारों पर रेट कट का असरअगर 25 बेसिस पॉइंट के रेट कट की घोषणा होती है तो भारतीय बाज़ार इसे सकारात्मक ले सकते हैं. आईटी और बैंकिंग सेक्टर में खरीदारी देखी जा सकती है. फेड चेयरमैन पॉवेल का नरम रुख़ बाज़ार में कुछ सकारात्मकता ला सकता है और इस उम्मीद को मज़बूत कर सकता है कि केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में भारी कटौती पर विचार कर रहा है.
25 आधार अंकों की दर में कटौती से भारतीय शेयर बाजार के कुछ सेक्टर जैसे आईटी और बैंकिंग को छोड़कर अन्य सेक्टर को फर्क नहीं पड़ेगा. फाइनेंशियल सर्विस सेक्टर के स्टॉक भी तेज़ी में रह सकते हैं.
अमेरिकी फेड की ब्याज दरों में कटौती और नरम रुख से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की जारी बिकवाली को रोकने में मदद मिल सकती है.एफआईआई जुलाई से कैश सेगमेंट में भारतीय शेयरों की आक्रामक सेलिंग कर रहे हैं.
17 सितंबर बुधवार को अपनी दो दिवसीय पॉलिसी मीटिंग के समापन पर केंद्रीय बैंकरों द्वारा अमेरिका के धीमे पड़ते लेबर मार्केट को सहारा देने के लिए दिसंबर के बाद से पहली बार ब्याज दर में कटौती की घोषणा की जाने की उम्मीद है. इस रेट कट में यह उम्मीद भी शामिल है कि प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ का मुद्रास्फीति पर सीमित प्रभाव ही पड़ेगा.
फेड की इस बार की बैठक असाधारण है, न केवल इसलिए कि केंद्रीय बैंकर अंततः ब्याज दरों पर अपनी रणनीति बदल रहे हैं, बल्कि इसलिए भी कि फेड के शक्तिशाली बोर्ड को शामिल करने वाले ताज़ा घटनाक्रम हैं और यह सब तब हो रहा है जब ट्रम्प प्रशासन राजनीतिक रूप से स्वतंत्र केंद्रीय बैंक पर दबाव बनाना जारी रखे हुए है. दोनों के बीच खींचतान पुरानी है जो फेड की दो दिवसीय बैठक में भी देखने को मिल सकती है.
लेबर मार्केट की कमज़ोरी सामने आई है जिससे रेट कट की उम्मीद बढ़ गई है. अब नौकरी के अवसरों की तुलना में काम की तलाश में बेरोजगार लोगों की संख्या अधिक है. 6 सितंबर को समाप्त सप्ताह में बेरोजगारी लाभ के लिए नए आवेदन लगभग चार वर्षों में उच्चतम स्तर पर पहुंच गए और अगस्त में 26 सप्ताह से अधिक समय से बेरोजगार लोगों की संख्या नवंबर 2021 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई. ये रेट कट करने के बड़े कारणों में से एक है.
भारतीय बाज़ारों पर रेट कट का असरअगर 25 बेसिस पॉइंट के रेट कट की घोषणा होती है तो भारतीय बाज़ार इसे सकारात्मक ले सकते हैं. आईटी और बैंकिंग सेक्टर में खरीदारी देखी जा सकती है. फेड चेयरमैन पॉवेल का नरम रुख़ बाज़ार में कुछ सकारात्मकता ला सकता है और इस उम्मीद को मज़बूत कर सकता है कि केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में भारी कटौती पर विचार कर रहा है.
25 आधार अंकों की दर में कटौती से भारतीय शेयर बाजार के कुछ सेक्टर जैसे आईटी और बैंकिंग को छोड़कर अन्य सेक्टर को फर्क नहीं पड़ेगा. फाइनेंशियल सर्विस सेक्टर के स्टॉक भी तेज़ी में रह सकते हैं.
अमेरिकी फेड की ब्याज दरों में कटौती और नरम रुख से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की जारी बिकवाली को रोकने में मदद मिल सकती है.एफआईआई जुलाई से कैश सेगमेंट में भारतीय शेयरों की आक्रामक सेलिंग कर रहे हैं.
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