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कैसे 'स्ट्रोकलेस वंडर' का टैग मिलने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने वनडे में धमाल मचाया,38 साल बाद टूटा है रिकॉर्ड

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पिछले दिनों साउथ अफ्रीका के बल्लेबाज मैथ्यू ब्रीत्ज़के (Matthew Breetzke) ने अपने वनडे करियर की शानदार शुरुआत की और डेब्यू के बाद से 50 के लगातार 5 स्कोर बना दिए। इसी के साथ, नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) का 38 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया।

नवजोत ने 1987 वर्ल्ड कप में अपने डेब्यू से 5 मैच में, 4 में बैटिंग की और लगातार चार 50 लगाए थे। मैथ्यू ब्रीत्ज़के ने और भी कई रिकॉर्ड बनाए पर सबसे ख़ास था नवजोत के 50 के रिकॉर्ड से भी बेहतर प्रदर्शन। नवजोत सिद्धू के नाम ये रिकॉर्ड इतने लंबे समय तक रहा कि सब यह मानने लगे थे कि किसी के लिए भी उनके प्रदर्शन की बराबरी करना बड़ा मुश्किल होगा। उनके बाद, 2010 में टॉम कूपर (नीदरलैंड) और 2019 में मैक्स ओ#39;डॉव (नीदरलैंड) ने डेब्यू से लगातार तीन 50 तो बनाए, लेकिन उन तक नहीं पहुंचे।

आज ये अंदाजा लगाना भी बड़ा मुश्किल है कि नवजोत सिद्धू ने जो चार लगातार 50 बनाए, वे उनके और टीम के लिए कितने ख़ास थे? ब्रीत्ज़के ने जो रन बनाए, बिना किसी दबाव बनाए और अपनी पहली 5 पारी में 463 रन बना दिए। इसकी तुलना में जब नवजोत सिद्धू ने वनडे डेब्यू किया, तो हर नजर उन पर थी और नाकामयाबी की उम्मीद करने वाले ज्यादा थे। शायद सेलेक्टर्स के अलावा किसी को भी इस दर्जे की क्रिकेट में एक बल्लेबाज के तौर पर उनके टेलेंट पर भरोसा नहीं था।

आज, रिकॉर्ड देखें तो आसानी से कह देंगे कि जो उम्मीद लगाई, वे उससे कहीं बेहतर बल्लेबाज थे। टेस्ट क्रिकेट में 42.80 औसत से 3202 रन, जिनमें से 2911 रन ओपनर के तौर पर थे। सिर्फ 5 भारतीय ओपनर के नाम उन से ज़्यादा रन हैं। इनमें से भी सिर्फ तीन- गावस्कर, सहवाग और गंभीर - का औसत उन से बेहतर (गंभीर तो 42.90 के साथ थोड़े ही बेहतर)। भारतीय ओपनर में से सिर्फ तीन ने उनके 34 छक्कों से ज्यादा छक्के लगाए हैं।

नवजोत सिद्धू ने 1983-84 में क्लाइव लॉयड की वेस्टइंडीज टीम के विरुद्ध टेस्ट डेब्यू किया था। अपने दूसरे टेस्ट में ओपनिंग की और थोड़ी ही देर में मार्शल ने भारत का स्कोर 0/2 कर दिया। ऐसे में नवजोत सिद्धू 114 मिनट टिके रहे, भले ही 20 रन बनाए, और सबसे बड़ा योगदान था गावस्कर के साथ 54 रन की वह पार्टनरशिप जिसने भारत को खतरे से बाहर निकाल दिया। ये उस गेंदबाजी को खेलने के मजबूत इरादे का नतीजा था पर तब के एक जाने-माने जर्नलिस्ट राजन बाला ने उन्हें #39;स्ट्रोकलैस वंडर#39; घोषित कर दिया। ये वह जमाना था जब प्रिंट मीडिया में जो छपे, उसे बड़ी चर्चा मिलती थी। ये तो ऐसा लिख दिया था जो नवजोत के नाम के साथ ही जुड़ गया। बड़ी बदनामी हुई। #39;स्ट्रोकलैस वंडर#39; का टाइटल उनकी पहचान बन गया। नतीजा: लगभग अगले 5 साल तक अपनी अगली टेस्ट पारी नहीं खेल पाए।

नवजोत सिद्धू ने याद करते हुए बताया, #39;मैंने इसे सहन कर लिया। लोगों को गलत साबित करने के लिए कड़ी मेहनत की। पटियाला में अपने घर पर घंटों टेनिस बॉल से खेलता था। मेरे पिता ने घर में सीमेंट का विकेट बनवाया था, वहां घंटों बल्लेबाजी करता था। घर के करीब से गुजर रहे हर व्यक्ति से कहता था कि वह अंदर आए और मेरे लिए कुछ गेंदें फेंक दे। मैं लगातार ऐसा करता रहा।#39;

#39;मेरे पिता, मुझे #39;स्ट्रोकलेस वंडर#39; बताने वाले उस लेख से बड़े निराश थे। मेरे अंदर से आवाज थी कि इस लेख को गलत साबित करना है। ऐसा नहीं कि मुझे स्ट्रोक लगाने नहीं आते थे। मैंने उस लेख की कटिंग अपनी अलमारी पर चिपका दी। इसे रोज पढ़ता था। इससे मुझे हमेशा याद रहा कि मुझे उस लेख को गलत साबित करना था।#39;

कहते हैं नवजोत सिद्धू ने चार साल तक खूब प्रैक्टिस की और हर दिन 300 से ज्यादा छक्के लगाए। घरेलू क्रिकेट में रन बनाना जारी रखा और रन बनाने की ऐसी बेताबी थी कि कोई भी मैच हो, खेलने के लिए तैयार। 1987 में सेलेक्टर्स के सामने सवाल था कि अब टेस्ट मैचों में श्रीकांत का पार्टनर कौन होगा? रिलायंस वर्ल्ड कप टीम में नवजोत सिद्धू का आना, टेस्ट टीम में वापसी के माहौल की शुरुआत थी। वनडे डेब्यू : 1987 वर्ल्ड कप में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध (वे ही आखिर में कप जीते) 5 छक्के लगाए, 79 गेंद में 73 रन। दूसरा वनडे : न्यूजीलैंड के विरुद्ध 4 और छक्के, 71 गेंद में 75 रन। तीसरा वनडे: जिम्बाब्वे के विरुद्ध बल्लेबाजी आर्डर बदल दिया और बल्लेबाजी नहीं की। चौथा वनडे: एक और 50, ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध 70 गेंद में 51 रन। पांचवां वनडे: लगातार चौथा 50, जिम्बाब्वे के विरुद्ध 61 गेंद में 55 रन। छठा वनडे: न्यूजीलैंड के विरुद्ध, फिर से बल्लेबाजी आर्डर बदल गया और बल्लेबाजी नहीं की।

ये था नवजोत सिद्धू का एक नया अवतार। राजन बाला को अपना नजरिया बदलने पर मजबूर कर दिया: #39;नवजोत सिंह सिद्धू, एक #39;स्ट्रोकलैस वंडर#39; से, एक पाम-ग्रोव हिटर में बदल गए हैं।#39; उनके लिए नया लेबल सिक्सर सिद्धू था और ये बदलाव कोई हंसी-मजाक की बात नहीं थी। वह टी20 का जमाना नहीं था और तब बल्लेबाज आज की तरह से 6 नहीं लगाते थे।

नवजोत सिद्धू का रिकॉर्ड: 136 वनडे मैच, 37.08 औसत से 4413 रन जिसमें 33 स्कोर 50 के और 6 स्कोर 100 वाले। आज हो सकता है उनका रिकॉर्ड बहुत प्रभावित न करे लेकिन 1998 तक सिर्फ अजहर और तेंदुलकर के ही नाम, भारत के लिए, उन से ज्यादा वनडे रन, 100 या 50 थे। मैथ्यू के 5 पारी में 50 के 5 स्कोर लगाने से पहले, वनडे में ये कम से कम 7 पारी में बनाने का रिकॉर्ड था (आसिफ इकबाल, नवजोत सिंह सिद्धू, टॉम कूपर और जोनाथन ट्रॉट के नाम)।

नवजोत सिद्धू को याद है, #39;जब 1987 वर्ल्ड कप से पहले कैंप के लिए मुझे चुना था तो मुझ पर कोई दबाव नहीं था। मैंने बस खुद से कहा कि मुझे अपना स्वाभाविक खेल खेलना है। इस तरह मुझे कामयाबी मिली। ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध पहले मैच में, मैंने अपना पूरा जोर लगा दिया, अपने सभी शॉट खेले। बदकिस्मती से हम वह मैच हार गए। मैंने लगातार चार 50 बनाए। ये सब ईश्वर की कृपा से हुआ। उसके बाद ही मैंने उस लेख की कटिंग को अपनी अलमारी से हटाया।

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चरनपाल सिंह सोबती

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