—महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने भी किया सहयोग
वाराणसी,3 नवम्बर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने बीआर अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय और महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के साथ मिलकर सतत खाद्य विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता हासिल की है। शोध दल ने हल्दी के रिसर्च प्रमाणित शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट और सूजन-रोधी गुणों के लिए जाने जानेवाले सक्रिय प्राकृतिक यौगिक करक्यूमिन की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए एक नया, पर्यावरण-अनुकूल तरीका बनाया है।
रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री, यूके द्वारा प्रकाशित शीर्ष, क्यू1 अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका सस्टेनेबल फूड टेक्नोलॉजी (आईएफ 5.3) में प्रकाशित यह शोधकार्य, प्रोटीन-आधारित आवरण प्रणाली का वर्णन करता है। यह प्रणाली करक्यूमिन की घुलनशीलता, स्थिरता और जैवउपलब्धता को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाने के लिए डिज़ाइन की गई है।
बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के कुलपति और बीएचयू के वरिष्ठ प्रोफेसर, प्रो. दिनेश चंद्र राय के पर्यवेक्षण में किए गए इस शोध का नेतृत्व डॉ. सुनील मीणा और प्रो. राज कुमार डुआरी ने किया, जिसमें नवनीत राज, शिवांश सुमन, कमलेश कुमार मीना और शुभम मिश्रा ने योगदान दिया। टीम ने करक्यूमिन की सुरक्षा और वितरण के लिए डेयरी प्रोटीन और प्लांट-आधारित प्रोटीन (सोया और मटर) दोनों की तुलना की। उनके परिणामों से पता चला कि डेयरी प्रोटीन ने सबसे स्थिर सुरक्षा प्रदान की, जबकि मटर प्रोटीन बेहतर एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि के साथ एक अत्यंत प्रभावी, हरित विकल्प साबित हुआ।
कुलपति प्रो. राय ने इस खोज के स्वास्थ्य और पर्यावरण लाभों को बताया। उन्होंने कहा कि “यह शोध सुरक्षित और पर्यावरण अनुकूल उत्पादित होने वाले फंक्शनल फूड बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इस नई, प्रोटीन-आधारित प्रणाली के माध्यम से करक्यूमिन की प्राकृतिक शक्ति का कुशलतापूर्वक उपयोग करके, हम बेहतर, पर्यावरण-अनुकूल पोषक उत्पादों के लिए मंच तैयार कर रहे हैं। प्लांट प्रोटीन, खासकर मटर प्रोटीन की क्षमता पर मिली सफलता, मानव स्वास्थ्य की वैश्विक चिंताओं को दूर करती है और कृत्रिम रसायनों पर निर्भरता कम करके टिकाऊ खाद्य उत्पादन प्रणालियों का समर्थन करती है।”
शोध के व्यापक दृष्टिकोण पर प्रो राय ने कहा कि टिकाऊ खाद्य प्रौद्योगिकी सिर्फ एक ट्रेंड नहीं है। यह वैश्विक पोषण का भविष्य है। हमारे संसाधन सीमित हैं, और इस तरह के स्वच्छ-लेबल, प्लांट-आधारित समाधानों की ओर बढ़ना वैकल्पिक नहीं है—यह आने वाली पीढ़ियों के लिए खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।” उन्होंने कहा कि बीएचयू और बीआरएबीयू अंतर-विषयक अनुसंधान का नेतृत्व करने, खाद्य प्रौद्योगिकी में नए विचारों को बढ़ावा देने और स्वास्थ्य व पर्यावरणीय स्थिरता में प्रमुख चुनौतियों का समाधान करने वाली राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियों को विकसित करने की अपनी प्रतिबद्धता जारी रखेंगे । ”यह नवाचार ‘स्वच्छ-लेबल’ खाद्य और पूरक उत्पादों को विकसित करना आसान बनाता है। यह प्राकृतिक, नवीकरणीय सामग्री के उपयोग को बढ़ावा देकर कृत्रिम योजक (मिलावट) की आवश्यकता को कम करता है। इस परियोजना को बीएचयू की इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस योजना और फैकल्टी/पोस्ट-डॉक्टोरल फेलो के लिए क्रेडिट रिसर्च ग्रांट से वित्तीय सहायता मिली है।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी
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