19 जनवरी 2025 को यानी डोनाल्ड ट्रंप के दूसरी बार राष्ट्रपति पद संभालने से एक दिन पहले जब अमेरिका में लोग सुबह जागे तो पाया कि लोकप्रिय वीडियो शेयरिंग ऐप टिकटॉक काम नहीं कर रहा है.
इसका इस्तेमाल करने वाले लगभग 17 करोड़ अमेरिकी लोगों की स्क्रीन पर मैसेज आ रहा था कि यह ऐप उपलब्ध नहीं है. इसकी वजह वो गतिरोध था, जो नौ महीने पहले शुरू हुआ था.
अप्रैल 2024 में अमेरिकी संसद ने टिकटॉक की मालिक बाइटडांस कंपनी के सामने विकल्प रखा था कि या तो वह टिकटॉक के अमेरिका में चलने वाले व्यापार को किसी अमेरिकी कंपनी को बेच दे, नहीं तो उस पर अमेरिका में प्रतिबंध लगा दिया जाएगा.
चीन के प्रभाव और डेटा सिक्युरिटी के मुद्दों के आधार पर अमेरिका में इससे जुड़ा एक कानून पारित हो गया जिसे दोनों दलों का समर्थन मिला.
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बाइटडांस ने अमेरिका की मांग पूरी नहीं की और उस पर प्रतिबंध लग गया. मगर एक दिन बाद टिकटॉक अमेरिका में फिर से उपलब्ध हो गया क्योंकि सत्ता संभालते ही राष्ट्रपति ट्रंप ने एक एग्ज़िक्यूटिव आदेश के ज़रिए टिकटॉक पर प्रतिबंध को 75 दिनों के लिए टाल दिया.
जनवरी में टिकटॉक पर प्रतिबंध की घोषणा के बाद से इसकी डेडलाइन चार बार बढ़ाई जा चुकी है. इस हफ़्ते की शुरुआत में ये डेडलाइन दिसंबर तक बढ़ाए जाने की घोषणा की गई है.
व्हाइट हाउस ने घोषणा की है कि अब अमेरिकी कंपनियां टिकटॉक के एल्गोरिदम पर नियंत्रण रखेंगी और ऐप के अमेरिकी ऑपरेशन के लिए सात में से छह बोर्ड सीटें अमेरिकियों के पास होंगी.
प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने कहा कि समझौते पर "आने वाले दिनों में" हस्ताक्षर हो सकते हैं, हालांकि चीन की ओर से अभी कोई टिप्पणी नहीं आई है.
शुक्रवार को डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि उन्होंने और उनके चीनी समकक्ष शी जिनपिंग ने एक फोन कॉल के दौरान टिकटॉक के अमेरिकी ऑपरेशन से जुड़े समझौते को मंज़ूरी दी है. हालांकि, चीन की तरफ से इसकी पुष्टि नहीं हुई.
ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर लिखा कि उनकी बातचीत "उपयोगी" रही और इस समझौते को मंजूरी देने के लिए उन्होंने शी जिनपिंग की "सराहना" की.
ऐसा बताया जा रहा है कि इस समझौते के तहत टिकटॉक का अमेरिकी कारोबार अमेरिकी निवेशकों के एक ग्रुप को बेचा जाएगा.
शनिवार को चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने एक बयान जारी किया, जिसमें समझौते की संभावना पर कम स्पष्टता नज़र आई.
बयान में कहा गया, "टिकटॉक पर चीन की स्थिति स्पष्ट है: चीनी सरकार कंपनी की इच्छा का सम्मान करती है और उसका स्वागत करती है कि वह बाज़ार के नियमों के अनुसार व्यावसायिक वार्ता करे, ताकि ऐसा समाधान निकले जो चीन के कानूनों और नियमों के तहत हो."
इसलिए इस हफ़्ते दुनिया जहान में हम यही जानने की कोशिश करेंगे कि- क्या अमेरिका में टिकटॉक का समय लद गया है?
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मिनेसोटा यूनिवर्सिटी में कानून के एसोसिएट प्रोफ़ेसर और साइबर सिक्युरिटी के एक्सपर्ट एलन रोज़ेनस्टीन बताते हैं कि अमेरिकी संसद द्वारा पारित कानून प्रोटेक्टिंग अमेरिकन्स फ़्रॉम फ़ॉरेन एडवर्सरी कंट्रोल्ड एप्लीकेशन एक्ट या पर्फ़ेका का उद्देश्य अमेरिकी जनता की विदेशी प्रतिद्वंद्वियों द्वारा नियंत्रित ऐप से सुरक्षा करना है.
"इस कानून के तहत टिकटॉक की मालिक चीनी कंपनी बाइटडांस को अमेरिका में इसके व्यापार का पूरा हिस्सा किसी अमेरिकी को बेचना होगा. अगर ऐसा नहीं किया गया तो टिकटॉक अमेरिका में कानूनी तौर पर काम नहीं कर पाएगा."
"साथ ही, अमेरिकी कंपनी ओरेकल जो टिकटॉक की क्लाउड होस्टिंग करती है और एपल और गूगल जहां से टिकटॉक ऐप डाउनलोड किया जा सकता है वो बाइटडांस को यह सेवाएं नहीं दे पाएंगी. अगर वो इसकी अनदेखी करती हैं तो उन पर भारी जुर्माना लगाया जा सकता है."
संसद ने यह कानून क्यों पारित किया?
एलन रोज़ेनस्टीन के अनुसार इसके साथ राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा जुड़ा है.
"टिकटॉक की मालिक एक चीनी कंपनी है और चीन सरकार इसे नियंत्रित कर सकती है. एक चिंता डेटा प्राइवेसी की है क्योंकि अमेरिका में टिकटॉक के 17 करोड़ यूज़र हैं. कई सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म की तरह टिकटॉक भी इन यूज़र्स का काफ़ी सारा निजी डेटा इकट्ठा करता है."
"किसी विदेशी प्रतिद्वंद्वी के हाथ में इस डेटा के आने से ख़ुफ़िया मामलों में सेंध लग सकती है. दूसरी चिंता यह है कि इसका इस्तेमाल ग़लत जानकारी फैलाने के लिए हो सकता है. पाया गया है कि कई लोग ख़बरों के लिए भी टिकटॉक का इस्तेमाल करते हैं."
"यह कंटेंट टिकटॉक के एल्गोरिदम से वितरित होता है. अगर इसका नियंत्रण चीन सरकार के हाथ में आ जाए तो वह इसका इस्तेमाल अमेरिका के ख़िलाफ हथियार की तरह कर सकती है."
एक समय लग रहा था कि अमेरिका में टिकटॉक का सफ़र ख़त्म हो गया है, मगर राष्ट्रपति ट्रंप ने इस कानून को लागू करने पर कुछ समय के लिए रोक लगा दी.
एलन रोज़ेनस्टीन मानते हैं कि राष्ट्रपति का यह फ़ैसला असंवैधानिक है. एलन रोज़ेनस्टीन का कहना है कानून लागू है और राष्ट्रपति उसे रद्द या स्थगित नहीं कर सकते.
ट्रंप सरकार को बस चार अमेरिका कंपनियों को ईमेल लिख कर यह निर्देश देना है और वो कंपनियां टिकटॉक को फ़ौरन बंद कर देंगी. लेकिन ट्रंप सरकार का कदम इस बात की मिसाल है कि वो अपने आपको कानून के ऊपर मानते हैं. लेकिन यह मामला केवल ट्रंप के नहीं बल्कि चीन की सरकार के हाथ में भी है.
एलन रोज़ेनस्टीन ने कहा कि सार्वजनिक तौर पर तो वह कह रहे हैं कि वो इंतज़ार कर रहे हैं कि कोई अमेरिकी कंपनी टिकटॉक को ख़रीदे.
"दरअसल ख़रीदारों की कमी नहीं है. कई कंपनियां इसे मुंहमांगे दाम पर ख़रीद सकती हैं. मसला यह है कि चीन की सरकार बाइटडांस को किसी अमेरिकी कंपनी को टिकटॉक बेचने की इजाज़त नहीं देगी."
"अमेरिका में टिकटॉक की मौजूदगी से चीन को वहां पैर जमाने की जो जगह मिली है जिससे उसे सुरक्षा के मामलों में फ़ायदा हो रहा है तो वह यह फ़ायदा क्यों हाथ से जाने देगा? वह तभी इसके लिए राज़ी होगा जब बदले में उसे कोई दूसरा बड़ा फ़ायदा हो."
इस मामले में क्या समझौता होता है, इस पर कई अन्य देशों की भी नज़र रहेगी.
दुनियाभर में मौजूदगीटिकटॉक का स्वरूप इंस्टाग्राम या एक्स जैसे अन्य सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म से काफ़ी अलग है और यह उन प्लेटफ़ॉर्मों की तुलना में काफ़ी तेज़ी से लोकप्रिय हुआ है.
सिडनी यूनिवर्सिटी में डिजिटल कल्चर की सीनियर लेक्चरर डॉक्टर जोआन ग्रे बताती हैं कि हर महीने एक अरब से अधिक लोग टिकटॉक का इस्तेमाल करते हैं. यह आंकड़े इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि अमेरिकी ऐप दस साल से ज़्यादा समय से बाज़ार में हैं जबकि यह काफ़ी नया है.
वह कहती हैं कि यह चीन में बना है. यह सोशल नेटवर्क से अधिक वीडियो प्रमोट करने वाला ऐप है. इस ऐप के ज़रिए हम अपने दोस्तों या परिचितों से नहीं जुड़ते बल्कि इस प्लेटफ़ॉर्म पर हम वहां मौजूद वीडियो देखते हैं.
इसका इस्तेमाल दुनियाभर में हर आयु की महिलाएं और पुरुष कर रहे हैं. इसके यूज़र की आयु चाहे जो हो उनकी फ़ीड में वो वीडियो आते हैं जो उनकी दिलचस्पी के हों. इसका एल्गोरिदम भांपता रहता है कि हम किसी वीडियो के प्रति क्या प्रतिक्रिया देते हैं. इसी के अनुसार लोगों की फ़ीड में वीडियो आते हैं.
इसलिए इस प्लेटफ़ॉर्म पर विज्ञापन भी अधिक आते हैं. अनुमान है कि इस साल टिकटॉक की मालिक बाइटडांस विज्ञापनों से 33 अरब डॉलर कमा लेगी जो कि उसकी 2022 की आय से 40 प्रतिशत अधिक है.
डॉक्टर जोआन ग्रे का मानना है कि टिकटॉक पर दिए गए विज्ञापन अधिक प्रभावी रहे हैं. इसी के साथ टिकटॉक पर छोटे उद्योगों की एक अर्थव्यवस्था बन गई है. टिकटॉक का दावा है कि केवल अमेरिका में ही उसके माध्यम से 15 अरब डॉलर का व्यापार हो रहा है.
डॉक्टर जोआन ग्रे ने कहा कि कई छोटे व्यापारी टिकटॉक के ज़रिए अपने संभावित ग्राहकों से संपर्क कर पा रहे है जो कि पहले नहीं हो पा रहा था. अब बस उन्हें अपना वीडियो कंटेंट टिकटॉक पर डाल देना है और एल्गोरिदम तय करता है कि उसमें किसकी दिलचस्पी हो सकती है. कई इन्फ्लूएंसर भी टिकटॉक के ज़रिए अपना करियर बना रहे हैं और कई प्रकार की चीज़ें बेच रहे हैं.
डॉक्टर जोआन ग्रे कहती हैं, "अगर अमेरिका में टिकटॉक पर प्रतिबंध लग गया तो कई लोगों को भारी नुकसान होगा. उनका करियर और रोज़गार ख़त्म हो जाएगा. विज्ञापन जगत से होने वाली आमदनी के बड़े हिस्से पर टिकटॉक के कब्ज़े से मेटा और गूगल जैसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म चिंतित हैं."
"वो इस कंपनी की बढ़ती लोकप्रियता से काफ़ी चिंतित हैं. अब टिकटॉक लोगों तक पहुंच बनाने में अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनियों को टक्कर दे रहा है. इससे पहले अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनियों को बाहर से कोई ख़ास चुनौती नहीं मिल रही थी."
"इस वजह से इस उद्योग में उनका प्रभुत्व स्थापित हो गया था, लेकिन अब टिकटॉक ने उन पर दबाव बना दिया है जिसकी वजह से वो अपनी सेवाओं में बदलाव लाने पर मजबूर हो गई हैं. उन्होंने भी अपने प्लेटफ़ॉर्म पर रील्स डालना शुरू कर दिया है. मगर उनके हाथ टिकटॉक जैसी सफलता नहीं लगी है."
इसी वजह से टिकटॉक को अमेरिका में सरकार की ओर से भी विरोध झेलना पड़ रहा है.
डॉक्टर जोआन ग्रे कहती हैं कि सरकार इस बात से चिंतित है कि एक चीनी कंपनी अमेरिका में इतना बड़ा प्रभाव हथिया रही है. सरकार का दावा है कि यह अमेरिका की सुरक्षा के लिए भी ख़तरा हो सकता है.
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अमेरिका की ज़ॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में कानून और तकनीक के प्रोफ़ेसर अनुपम चंदर याद दिलाते हैं कि अमेरिका से पहले भारत ने जून 2020 में टिकटॉक पर प्रतिबंध लगा दिया था, जो अभी भी लागू है.
उन्होंने कहा, "हिमालय में दो देशों के सैनिकों के बीच संघर्ष के बाद भारत ने टिकटॉक सहित कई चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया था. भारत के एक मंत्री ने इसे डिजिटल स्ट्राइक करार दिया था."
भारत के बाद नेपाल, सेनेगल और सोमालिया ने भी टिकटॉक को बंद कर दिया.
अनुपम चंदर ने बताया कि इसके अलावा कनाडा और ताइवान ने भी सरकारी मोबाइल फ़ोन और कंप्यूटरों पर टिकटॉक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया, मगर निजी उपकरणों पर उसे ब्लॉक नहीं किया. इन देशों ने डेटा सिक्युरिटी का हवाला देकर यह फ़ैसला किया था.
अनुपम चंदर कहते हैं कि अन्य सोशल मीडिया ऐप की तरह टिकटॉक के पास भी यूज़रों का सामान्य डेटा इकट्ठा होता है. मिसाल के तौर पर हम ऐप का कैसे इस्तेमाल करते हैं, क्या सर्च करते हैं, क्या देखते हैं, क्या मैसेज करते हैं.
अगर इस डेटा में बड़े उद्योगों या सरकार से संबंधित ख़ुफ़िया जानकारी हो तो राष्ट्रीय सुरक्षा के ख़तरे में पड़ने की संभावना हो सकती है.
पिछले साल के अंत में टिकटॉक और उसके यूज़र्स ने सोशल मीडिया ऐप संबंधी संसद के कानून को अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट में यह कह कर चुनौती दी थी कि टिकटॉक जैसे सोशल मीडिया ऐप पर पाबंदी उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात है. मगर अदालत ने सरकार की राष्ट्रीय सुरक्षा की दलील को स्वीकार करके इसे दी गई चुनौती को ख़ारिज कर दिया था.
अमेरिका में टिकटॉक ने राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंता को दूर करने के लिए प्रोजेक्ट टेक्सस शुरू किया.
अनुपम चंदर ने बताया कि प्रोजेक्ट टेक्सस टिकटॉक की एक योजना का नाम है, जिसके तहत अमेरिकी लोगों का डेटा चीन स्थित सर्वर में स्टोर करने के बजाए अमेरिका, जैसे टेक्सस में स्टोर किया जाएगा जिस पर अमेरिकी कंपनी ओरेकल का नियंत्रण होगा.
सिर्फ़ जो वीडियो अमेरिकी लोग देख रहे हैं या अपलोड कर रहे हैं, केवल वही अमेरिका के बाहर के सर्वर पर स्टोर होगा.
"लेकिन चीन के साथ बढ़ती प्रतिद्वंद्विता के चलते उससे जुड़ी किसी भी बात को हज़म करना अमेरिका के लिए आसान नहीं है. सरकार के लिए आम लोगों को प्रोजेक्ट टेक्सस क्या है यह समझाना और आश्वस्त कराना कि उनका डेटा सुरक्षित रहेगा, यह आसान नहीं है."
अमेरिका में टिकटॉक का भविष्य
लंदन स्थित थिंकटैंक चैटहम हाउस की शोधकर्ता इसाबेला विलकिनसन की राय है कि अमेरिका में टिकटॉक का दौर ख़त्म हो गया है.
"हो सकता है अमेरिका में टिकटॉक को मजबूरन किसी अमेरिकी कंपनी को बेचना पड़े या उस पर प्रतिबंध लगा दिया जाए. तीसरा विकल्प यह हो सकता है कि उसे बंद करने के फ़ैसले को कुछ समय के लिए फिर टाल दिया जाए."
राष्ट्रपति ट्रंप भी इस मामले की पेचीदगी को समझते हैं और जैसा संभावना थी, उन्होंने टिकटॉक के ख़िलाफ़ संसदीय कानून लागू करने के फ़ैसले को कुछ समय के लिए टाल दिया है. लेकिन अगर टिकटॉक को बेचने पर सहमति बनती है तो अमेरिका में इसका ख़रीदार कौन हो सकता है?
इसाबेला विलकिनसन कहती हैं कि कई किस्म की कंपनियां और लोग टिकटॉक को ख़रीदने की होड़ में हैं. इस मामले में कई अफ़वाहें उड़ रही हैं. कुछ लोग मानते हैं कि इस रेस में ओरेकल कंपनी सबसे आगे है. वह फ़िलहाल अमेरिका में टिकटॉक चलाने में मदद कर रही है.
वहीं शार्क टैंक के एक प्रतिनिधि ने भी टिकटॉक ख़रीदने के बारे में बयान दिए थे. इसके अलावा माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न और एलन मस्क का भी नाम सामने आ रहा है. कुछ निजी व्यक्तियों का नाम भी लिया जा रहा है जिसमें सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर मिस्टर बीस्ट शामिल हैं.
अगर टिकटॉक किसी अमेरिकी को बेच भी दिया जाता है तो सवाल होगा कि इसे चलाया कैसे जाए? यहां सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा टिकटॉक के एल्गोरिदम का है, जो तय करता है कि कौन से यूज़र को क्या कंटेंट दिखाया जाए.
चीन बाइटडांस को इस ताकतवर एल्गोरिदम को अमेरिकी कंपनी को सौंपने नहीं देगा. इस मुद्दे पर मामला अटक सकता है. लेकिन सवाल यह है कि सरकारें अपने देश को फ़ेक न्यूज़, ग़लत जानकारी और डेटा के लीक होने से कैसे बचा सकती हैं?
इसाबेला विलकिनसन ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि ग़लत जानकारी के प्रसारण से पूरी तरह बचा जा सकता है. मगर इससे निपटने के प्रयास ज़रूर किए जा सकते हैं. यह कैसे किया जाना चाहिए इस बारे में हम एस्टोनिया जैसे बाल्टिक देश से सीख सकते हैं कि देश में ग़लत जानकारी का शिकार होने से लोगों को कैसे बचाया जाए. कैसे उन्हें इस बारे में शिक्षित या अवगत कराया जाए."
"जब कोई विदेशी ताकत ग़लत जानकारी को उसके ख़िलाफ़ हथियार बना रही हो तो उससे कैसे निपटा जाए. दूसरी ओर जहां तक टिकटॉक का सवाल है, अगर उसे किसी अमेरिकी कंपनी को बेच दिया जाता है तो अमेरिकी सरकार की सुरक्षा संबंधी चिंता काफ़ी हद तक दूर हो सकती है. हालांकि, यह उस सुरक्षा की गारंटी नहीं है."
तो क्या अमेरिका में टिकटॉक का दौर ख़त्म हो गया है? ऐसी संभावना तो है. मगर राष्ट्रपति ट्रंप ने किसी अमेरिकी कंपनी द्वारा टिकटॉक को ख़रीदे जाने के लिए उस पर प्रतिबंध के फ़ैसले को फ़िलहाल टाल दिया है.
लेकिन अगर टिकटॉक को कोई अमेरिकी कंपनी ख़रीदने में कामयाब हो भी जाती है तो उसके सामने यह चुनौती होगी कि टिकटॉक के चीन में स्थित उस ताकतवर एल्गोरिदम से अमेरिकी जनता के डेटा को कैसे सुरक्षित रखा जाए. जब तक इस मामले में कोई समझौता नहीं हो जाता तब तक अमेरिका में टिकटॉक का भविष्य अनिश्चित है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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