चीन ने बुधवार को 'विक्ट्री डे परेड' में अपना शक्ति प्रदर्शन किया, जिसमें सैन्य परेड के साथ कई नए हथियार भी दिखाए गए.
इस परेड का आयोजन दूसरे विश्व युद्ध के अंत में जापान के चीन में आत्मसमर्पण की 80वीं वर्षगाँठ पर किया गया.
हालाँकि परेड से ज़्यादा ध्यान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के शीर्ष नेता किम जोंग उन के साथ जुगलबंदी ने खींचा.
इस दौरान इन नेताओं के अलावा 20 से अधिक देशों के राष्ट्र प्रमुख भी परेड में मौजूद थे, जिनमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ भी शामिल थे.
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लेकिन चर्चा केवल शी जिनपिंग, पुतिन और किम जोंग उन की हुई.
ऐसा पहला मौक़ा था, जब दुनिया में सबसे अधिक प्रतिबंध झेल रहे पुतिन और किम जोंग उन, शी जिनपिंग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सार्वजनिक रूप से मिले.
ट्रंप का आरोप, शी जिनपिंग का जवाबअमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने बुधवार की सुबह ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में चीन के राष्ट्रपति पर आरोप लगाया कि वह रूस और उत्तर कोरिया के साथ मिलकर अमेरिका के ख़िलाफ़ साज़िश रच रहे हैं.
वहीं शी जिनपिंग ने भाषण के दौरान बिना डोनाल्ड ट्रंप का नाम लिए स्पष्ट कहा कि 'चीन किसी की धौंस से डरता नहीं है.'
ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी में चाइना स्टडीज़ की प्रोफ़ेसर श्रीपर्णा पाठक ने बीबीसी हिन्दी के के पॉडकास्ट में कहा कि परेड से अमेरिका थोड़ा सदमे में है, इसी वजह से डोनाल्ड ट्रंप ने सुबह-सुबह ट्रुथ सोशल पर पोस्ट लिखकर कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिकी सेना ने चीन की मदद की थी.
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ग़ौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया के अलग-अलग देशों पर टैरिफ़ लगाए हैं, जिनमें चीन भी शामिल है. अमेरिका ने भारत पर 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाया है.
अमेरिका और भारत के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव के बीच देखने को मिला है कि भारत के चीन के साथ संबंधों में पूरे पाँच साल बाद थोड़ी गर्मजोशी आई है.
साल 2020 में गलवान घाटी में सैन्य झड़प के बाद दोनों के रिश्ते ख़राब गए थे, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ़ वॉर के बाद इसमें सुधार देखने को मिला है.
बीते महीने चीन के विदेश मंत्री वांग यी भारत आए थे, तो भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर भी चीन की यात्रा पर गए थे.
दूसरी ओर सात साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चीन का दौरा किया है.
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में शामिल होने के अलावा उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय मुलाक़ात भी की.
भारत-चीन संबंधों में इसे काफ़ी महत्वपूर्ण बताया गया.
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एससीओ बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी, शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच नज़दीकी भी देखने को मिली.
31 अगस्त से 1 सितंबर तक हुए एससीओ सम्मेलन के दौरान इसके 10 सदस्य देशों के अलावा साझेदार देशों के शीर्ष नेता शिखर सम्मेलन में मौजूद रहे.
इनमें से अधिकतर नेता 3 सितंबर को हुई विक्ट्री डे परेड में भी शामिल हुए, जिनमें चर्चित नाम रूसी राष्ट्रपति पुतिन और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन का है.
पुतिन पूरे चार दिन के दौरे पर चीन में थे.
हालाँकि इस परेड में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिरकत नहीं की, जिसकी काफ़ी चर्चाएँ हुईं.
पीएम मोदी चीन की परेड में क्यों शामिल नहीं हुए?
इस सवाल पर जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में चीन और दक्षिण पूर्व एशिया अध्ययन केंद्र में एसोसिएट प्रोफ़ेसर अरविंद येलेरी ने बीबीसी संवाददाता दीपक मंडल को बताया, "चीन की जो फ़ासीवादी विरोधी परेड आज निकाली गई है, वो दूसरे विश्वयुद्ध में जापानी आक्रामकता के ख़िलाफ़ थी. भारत इसलिए इस परेड में शामिल होकर जापान के ख़िलाफ़ कोई संदेश नहीं देना चाहता था. भारत ब्रिटिश साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ रहा है. जापान के ख़िलाफ़ नहीं."
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ इस परेड में शामिल हुए, लेकिन पीएम मोदी नहीं गए.
इस पर श्रीपर्णा पाठक कहती हैं, "विक्ट्री डे परेड में शामिल होने का न्योता सबके लिए था, लेकिन पीएम नहीं गए, ये परेड जापानी सेना पर जीत का जश्न है और जापान भारत का अच्छा दोस्त है, चीन को भारत पर न भरोसा था और न है."
वहीं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फ़ॉर रशियन एंड सेंट्रल एशियन स्टडीज़ में एसोसिएट प्रोफ़ेसर अमिताभ सिंह भी अरविंद येलेरी और श्रीपर्णा पाठक की बात से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं.
साथ ही वे इसमें एक तर्क को और जोड़ते हैं.
प्रोफ़ेसर अमिताभ सिंह कहते हैं कि भारत उन शक्तियों के साथ खड़े होते नहीं दिखना चाहता है, जो उदारवादी और लोकतांत्रिक नहीं हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले जापान का दौरा किया था और फिर वहाँ से वो चीन पहुँचे थे. जापान के चीन और उत्तर कोरिया के साथ तनावपूर्ण संबंध जगज़ाहिर हैं.
अमिताभ सिंह कहते हैं, "जापान और चीन की अपनी प्रतिद्वंद्विता है. चीन में राष्ट्रवाद की भावना को जगाना होता है, तो जापान और द्वितीय विश्व युद्ध का नाम लिया जाता है. भारत ऐसे में असहज महसूस करता, अगर वह चीन और उत्तर कोरिया के साथ मंच साझा करता."
अरविंद येलेरी कहते हैं, "हमारे लिए जापान फ़ासिस्ट ताक़त नहीं था. इसलिए भारत इस परेड से दूर रहा. दूसरी बात यह है कि अगर भारत इस परेड में शामिल होता, तो ये चीन के सैन्य प्रदर्शन को समर्थन देना होता."
"भले ही आज फास़िस्ट ताक़तें नहीं हैं, लेकिन चीन और पीएलए जिस तरह अपना सैन्य वर्चस्व बढ़ा रहे हैं, उसमें पीएम मोदी के इस तरह की परेड में शामिल होने को चीन अपने हित में इस्तेमाल करता, इसलिए पीएम मोदी इस परेड में शामिल नहीं हुए.''
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अमेरिकी टैरिफ़ के बाद भारत और अमेरिका के संबंधों में खटास आ गई है.
ट्रंप ने भारत पर 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लगा रखा है. पीएम मोदी की चीन यात्रा और एससीओ सम्मेलन में शी जिनपिंग और पुतिन के साथ उनकी गर्मजोशी को अमेरिका के लिए एक संदेश माना जा रहा है.
क्या पीएम मोदी चीन की सैन्य परेड में शामिल होकर ट्रंप को और नाराज़ करना नहीं चाहते थे?
अमिताभ सिंह को नहीं लगता कि मोदी ने यह फ़ैसला ट्रंप की वजह से किया.
वो कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि डोनाल्ड ट्रंप की वजह से पीएम मोदी शामिल नहीं हुए. अगर आप पीछे देखें, तो चीन के विदेश मंत्री वांग यी भारत के बाद पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के दौरे पर गए थे. उन्होंने एक तरह से भारत और पाकिस्तान को संतुलित करने की कोशिश की."
"ऐसा पहले भी देखा गया है कि कई विदेशी नेता भारत और पाकिस्तान का दौरा साथ करते रहे हैं. इसी तरह पीएम मोदी पहले जापान गए, जो एक प्रतीकात्मक दौरा था."
अमिताभ सिंह कहते हैं कि यह जमावड़ा उन देशों का था, जो चीनी वर्ल्ड ऑर्डर में शामिल होना चाहते हैं, इसलिए भारत इसमें शामिल नहीं हुआ.
उन्होंने बताया, "इस परेड में शामिल देशों की अगर सूची बनाएँ, तो उदारवाद, लोकतंत्र और नागरिकों के अधिकार के मामलों में वे सभी पैमानों पर नीचे आते हैं. यह परेड शक्ति प्रदर्शन के साथ-साथ एक वैकल्पिक वैश्विक व्यवस्था (वर्ल्ड ऑर्डर) को भी दिखा रही थी."
अमिताभ सिंह कहते हैं कि पीएम मोदी का यह द्विपक्षीय दौरा केवल संदेश देने के लिए था. भारत जानता है कि उसके चीन के साथ इतने मतभेद हैं, जो सिर्फ़ एक दौरे से नहीं सुलझ सकते.
उन्होंने कहा, "इस समय दुनिया में एक ऐसी स्थिति बनी हुई है, जिसमें एकजुटता दिखानी होगी, लेकिन भारत चीन के नेतृत्व वाले वर्ल्ड ऑर्डर के साथ नहीं खड़ा है. भारत उदारवादी और लोकतांत्रिक वर्ल्ड ऑर्डर के साथ खड़ा दिखना चाहता है."
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