नारायणपुर ज़िला पुलिस मुख्यालय से दो किलोमीटर दूर आश्रम रोड पर एक छोटे से जंगल के बीच माओवादी नेता नंबाला केशव राव समेत सात माओवादियों के शवों का छत्तीसगढ़ पुलिस ने अंतिम संस्कार कर दिया.
नंबाला केशव राव को बसवराजू के नाम से भी जाना जाता है. वह भारत में प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) के शीर्ष नेता थे.
छत्तीसगढ़ पुलिस के मुताबिक, 21 मई को नारायणपुर के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में केशव राव 26 अन्य माओवादियों के साथ मारे गए थे.
पुलिस के मुताबिक मारे गए 20 माओवादियों के शव उनके परिजनों को सौंप दिए गए.
सोमवार 26 मई को पाँच दिन से रखे बाकी सात शवों को जला दिया गया. इससे शव लेने पहुँचे परिजनों को बेहद निराशा हुई और उनमें नाराज़गी है.
शव जलाने के बारे में पुलिस का दावाबस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी ने बताया कि बसवराजू समेत सात माओवादियों के शवों का अंतिम संस्कार इसलिए किया गया है क्योंकि इन शवों के लिए किसी ने स्पष्ट क़ानूनी दावा नहीं किया था. वहीं, एक महिला माओवादी का अंतिम संस्कार उनके परिजनों की सहमति से किया गया.
हालाँकि, एक ओर पुलिस यह दावा कर रही है तो दूसरी ओर परिजनों का कुछ और ही कहना है. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से आए कम से कम पाँच परिवार मुठभेड़ के बाद से ही अधिकारियों से अपने रिश्तेदारों के शव देने की मिन्नतें कर रहे थे. इनमें नंबाला केशव राव के भाई नंबाला राम प्रसाद राव भी शामिल हैं.
केशव राव के भाई नंबाला राम प्रसाद राव ने शव जलाए जाने के बाद 26 मई को बीबीसी से बात की. उन्होंने कहा, "हमें थाने बुलाकर पुलिस ने बताया कि मेरे भाई का शव घुलने लगा है और उसको अस्पताल से मेरे गाँव ले जाने में बहुत ख़तरा है. उन्होंने कई तरह की बीमारी फैलने का ज़िक्र किया और कहा कि हम नारायणपुर में ही अंतिम संस्कार कर लें, लेकिन हमने इसके लिए रज़ामंदी नहीं दी थी."
तेलंगाना से आए माओवादी विवेक उर्फ़ राकेश के रिश्तेदार सारैया ने छत्तीसगढ़ पुलिस पर जानबूझकर शव देने में देरी करने का आरोप लगाया.
सारैया ने भी 26 मई की शाम को बीबीसी से कहा, "हम लोग पिछले पाँच दिनों से यहाँ अपने रिश्तेदार का शव लेने के लिए आए हुए थे. लेकिन छत्तीसगढ़ पुलिस ने हमको इधर से उधर घुमाया और अब लाश सड़ने के बाद आज हमसे यहीं नारायणपुर में अंतिम संस्कार करने के लिए कहा. ये कहाँ का न्याय है?''
दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ पुलिस ने इन आरोपों को खारिज किया है.
सुंदरराज पी ने कहा, "हमने सभी क़ानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया है. जो लोग भी आए थे, शवों से उनके रिश्ते के दावे संतोषजनक नहीं थे और हम ज्यादा लंबे समय तक शवों को रख भी नहीं सकते थे. इसलिए कल उनका विधिसम्मत अंतिम संस्कार किया गया.''


इक्कीस मई की दोपहर से ही अबूझमाड़ के जंगलों में किसी बड़े हलचल की आहट रायपुर से लेकर दिल्ली तक पहुँच रही थी.
दबी आवाज़ में यह चर्चा होने लगी थी कि सुरक्षाबलों ने बड़ी कामयाबी पाई है. दोपहर लगभग चार बजे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर सुरक्षाबलों की तारीफ़ करते हुए लिखा कि नक्सलवाद को ख़त्म करने की दिशा में यह एक ऐतिहासिक जीत है. नारायणपुर में 27 माओवादी मारे गए हैं जिनमें महासचिव केशव राव भी शामिल हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस ऑपरेशन की तारीफ़ की.
ऑपरेशन के बाद भारतीय एयर फोर्स के हेलीकॉप्टर से कथित माओवादियों के शव को नारायणपुर जिला चिकित्सालय लाया गया.
इसी अस्पताल में सभी माओवादियों का पोस्टमॉर्टम हुआ. वहीं दूसरी ओर, इसमें शामिल सुरक्षाबलों के जश्न मनाने के वीडियो भी वायरल हुए.
अबूझमाड़ में हुए इस ऑपरेशन में दो सुरक्षाबलों की भी मौत हो गई थी. 22 मई को राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया.
घटना के दो दिन बाद यानी 23 मई से मारे गए माओवादियों के परिजन एक-एक कर नारायणपुर ज़िला अस्पताल पहुँचने लगे थे. इनमें से कई परिजन ऐसे थे जिन्होंने दशकों से अपने रिश्तेदारों को नहीं देखा था.
तेलंगाना के हनमकोंडा के एक माओवादी विवेक के पिता दूसरे परिजनों के साथ शुक्रवार 23 मई से नारायणपुर के ज़िला अस्पताल के पोस्टमॉर्टम घर के बाहर इंतज़ार कर रहे थे.
पेशे से ट्रक ड्राइवर विवेक के पिता ने बीबीसी से कहा था, "हमने 2016 के बाद से अपने बेटे को नहीं देखा. पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए जा रहा हूँ, बोलकर चला गया था. नौ साल बाद 22 तारीख़ को ख़बरों के माध्यम से उसकी मौत की ख़बर लगी. हमें चार दिन से नारायणपुर ज़िला अस्पताल और पुलिस स्टेशन के बीच घुमाया जा रहा है लेकिन अब तक हम विवेक के शव को देख भी नहीं पाए हैं.''
आठ सौ किलोमीटर दूर आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले से आए माओवादी भूमिका के भाई राजू का आरोप है कि उनसे पुलिस ने एक बार बात तक नहीं की.
बीबीसी की 24 मई की शाम राजू से बात हुई थी. वह बताते हैं, "मैं एम्बुलेंस लेकर आया था कि अपनी बहन का शव वापस लेकर जाऊँगा. यहाँ तीन दिन से भटक रहा था लेकिन किसी पुलिस अधिकारी से बात नहीं हो पा रही थी.''
नारायणपुर में 23 मई से पुलिस के आला अधिकारी मीडिया से भी बात करने से बच रहे थे.
छत्तीसगढ़ पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बीबीसी से नाम न छापने की शर्त पर 24 मई को कहा था कि प्रशासन शीर्ष माओवादियों के शवों को परिजनों के हवाले नहीं करना चाहता है.
उन्होंने कहा था, "आला अधिकारियों को आशंका है कि केशव राव समेत आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मारे गए माओवादियों के शवों को ले जाकर परिजन अपने गृह इलाकों में रैलियाँ और कार्यक्रम आयोजित करेंगे. इसका माओवाद विरोधी अभियान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.''
माँ को बेटे के आख़िरी दर्शन का इंतज़ार थाबीबीसी से बात करते हुए राम प्रसाद राव ने रविवार 25 मई को कहा था, "सरकार को डर है कि हम शवों के साथ रैली निकालेंगे, सभाएँ करेंगे. जबकि हम अपने भाई के शव का अंतिम संस्कार उसकी जन्मभूमि में करना चाहते हैं. हमारी बूढ़ी माँ बिस्तर पर है. 50 साल पहले मेरा भाई केशव राव घर से चला गया था. अब उसकी मृत्यु के बाद माँ एक बार उसे देखना चाहती है."
दरअसल 23 मई को केशव राव के भाई और माँ ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट से उनका शव सौंपने की अपील की थी.
शवों के पोस्टमॉर्टम की स्थिति के बारे में न्यायालय की विशेष पूछताछ पर छत्तीसगढ़ के महाधिवक्ता ने बताया था कि आज दिन के अंत तक (यानी 24 मई तक) सभी शवों का पोस्टमॉर्टम पूरा हो जाएगा.
छत्तीसगढ़ के महाधिवक्ता ने कोर्ट को यह भी बताया था कि 'पोस्टमॉर्टम पूरा होने के बाद शवों को मृतकों के परिजनों को सौंप दिया जाएगा.'
महाधिवक्ता के बयान के आधार पर कोर्ट ने केस ख़ारिज कर दिया और कहा कि केशव राव का परिवार पुलिस अधिकारियों के पास जाकर उनका शव ले सकते हैं.
नंबाला केशव राव के भाई राम प्रसाद राव ने बीबीसी से कहा, "हम कोर्ट का आदेश लेकर आए थे. इसमें इसी सरकार ने कहा था कि पोस्टमॉर्टम के बाद हमें केशव राव का शव सौंप दिया जाएगा लेकिन यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ."
हाईकोर्ट में सुनवाई के दो दिन बाद सात माओवादियों के शव जला दिए गए. इनमें आंध्र प्रदेश के केशव राव, जांगू नवीन, तेलंगाना की संगीता, भूमिका और विवेक समेत छत्तीसगढ़ के दो अन्य माओवादियों के शव थे.
सोमवार को पुलिस अधीक्षक के ऑफिस के सामने, राम प्रसाद ने बीबीसी से कहा था, "हम अपने भाई का शव लिए बिना यहाँ से नहीं जाएँगे… चाहे जितना भी समय लगे.''
अबूझमाड़ और माओवादियों का रिश्ताअबूझमाड़ के जिस जंगल में केशव राव मारे गए उसका अधिकांश हिस्सा आज भी सरकार की पहुँच से बाहर है.
जीपीएस और गूगल मैप के इस दौर में भी अबूझमाड़ के ज़्यादातर हिस्सों के बारे में सरकारी रिकॉर्ड में कोई जानकारी नहीं है.
इस इलाक़े में किसके पास कितनी ज़मीन है, चारागाह या सड़कें हैं या नहीं या कौन सा गाँव कहाँ है या इनकी सरहद कहाँ है, यह भी पता नहीं है.
अबूझमाड़ के बारे में कहा जाता है कि पहली बार अकबर के ज़माने में यहाँ राजस्व के दस्तावेज़ एकत्र करने की कोशिश की गई थी. हालाँकि, घने जंगलों वाले इस इलाक़े में सर्वे का काम अधूरा रह गया था.
हालत यह हुई कि अबूझमाड़ के इलाकों में बसने वाली आदिवासी आबादी मूलभूत सुविधाओं से दूर जीवन जीती रही.
1980 के दशक में माओवादियों ने छत्तीसगढ़ के इस इलाक़े में प्रवेश किया और फिर इसे अपना आधार इलाक़ा बनाना शुरू किया.
साल 2023 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद छत्तीसगढ़ में माओवादियों के ख़िलाफ़ भारतीय सुरक्षा बलों ने बड़ा अभियान शुरू किया. केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि इस खनिज संपन्न आदिवासी इलाक़े में लंबे समय से चल रहे विद्रोह को ख़त्म किया जाए.
सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, साल 2000 से 2024 के बीच माओवादियों के साथ मुठभेड़ में 11 हज़ार से ज़्यादा नागरिक और सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं.
इसी दौरान, सुरक्षा बलों ने छह हज़ार 160 माओवादियों को मारने का दावा भी किया है.
कुछ महीनों पहले तक अबूझमाड़ को माओवादियों की राजधानी कहा जाता था. हालाँकि, केशव राव के मारे जाने के बाद अब यह भी चर्चा होने लगी है कि क्या माओवादी आंदोलन के ख़ात्मे की शुरुआत हो चुकी है?
आँकड़ों और चर्चाओं से दूर सुरक्षाबल अगले ऑपरेशन की तैयारी में जुट गए हैं.
दूसरी ओर, शवों को प्रशासन द्वारा जलाए जाने के बाद मंगलवार 27 मई की सुबह आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से आए परिवार वापस अपने गाँव लौटने की तैयारी कर रहे हैं.
अपने गाँव लौटने से पहले माओवादी भूमिका के भाई राजू ने बीबीसी से कहा, "हम इस अन्याय के ख़िलाफ़ न्यायालय से मदद लेंगे. मारे जाने के बाद किसी के शव को उसके परिजनों को न सौंपना क़ानून और हमारे मानवाधिकारों का उल्लंघन है.''
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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