बीते साल बड़े पैमाने पर एक विरोध प्रदर्शन के ज़रिए डेढ़ दशक पुरानी अवामी लीग सरकार के पतन के बाद से बांग्लादेश की कूटनीति में काफ़ी बदलाव आया है.
शेख़ हसीना की सरकार के जाने के बाद लंबे समय से सहयोगी रहे भारत के साथ संबंधों में तनाव भी आया है. बीते एक साल में बांग्लादेश की विदेश नीति भारत से हटकर चीन के नज़दीक जाती दिखी है. इसके साथ ही, पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश भी देखी गई है.
इस बीच बांग्लादेश के साथ भारत के आर्थिक और व्यापारिक संबंध भी बिगड़े हैं और सीमा पर भी संघर्ष की स्थिति पैदा हुई है. बांग्लादेश ने आरोप लगाया है कि भारत में पकड़े जा रहे कथित अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को बांग्लादेश की सीमा में धकेला जा रहा है.
राजनयिकों और विश्लेषकों का कहना है कि बीते एक साल में बांग्लादेश का सबसे बड़ा कूटनीतिक बदलाव किसी 'एक देश पर केंद्रित विदेश नीति' से पीछे हटना है.
अंतरराष्ट्रीय संबंधों के शिक्षक प्रोफ़ेसर साहब इनाम ख़ान ने बीबीसी बांग्ला से कहा, "बांग्लादेश की नई सरकार पहले से ज़्यादा व्यावहारिक हो गई है. किसी ख़ास देश-केंद्रित विदेश नीति से हटने के कारण बांग्लादेश का भू-राजनीतिक महत्व भी बढ़ गया है."
विश्लेषकों का मानना है कि पिछले साल के विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई हत्याओं पर संयुक्त राष्ट्र के फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग मिशन की रिपोर्ट, प्रोफ़ेसर यूनुस के लिए एक बड़ी कूटनीतिक सफलता है.
इस बीच, इस बात पर काफ़ी चर्चा है कि डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने के बाद सभी देशों पर लगाए गए टैरिफ़ से बांग्लादेश कैसे निपटेगा.
हालांकि म्यांमार में रोहिंग्या मुद्दे को लेकर प्रोफ़ेसर मोहम्मद यूनुस की सरकार की आलोचना भी हुई है.
अंतरिम सरकार के पहले साल में कूटनीति के क्षेत्र में बांग्लादेश कितना सफल रहा, यह सवाल भी उठ रहा है.
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पिछले डेढ़ दशक में अवामी लीग सरकार के दौरान भारत-बांग्लादेश संबंधों के जिस ऊंचाई पर पहुंचने की बात कही जा रही थी, वह भी 5 अगस्त 2024 को शेख़ हसीना की सरकार के गिरने के साथ लगभग ढह गई. रिश्ते सुधरने के बजाय धीरे-धीरे और बिगड़ते चले गए.
बांग्लादेश में तख़्तापलट के बाद से भारतीय मीडिया और सोशल मीडिया पर अल्पसंख्यकों और हिंदुओं के ख़िलाफ़ हमलों और अत्याचारों की ख़बरों और अफ़वाहों ने भी दोनों देशों के रिश्तों की गिरावट में भूमिका निभाई.
पूर्व राजनयिक एम हुमायूं कबीर ने बीबीसी बांग्ला को बताया, "बांग्लादेश से भागकर भारत गईं शेख़ हसीना के ख़िलाफ़ बांग्लादेशी अदालतों में मुक़दमा चल रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना दिल्ली में कई बार राजनीतिक बयान देती देखी गई हैं. इस वजह से भी दोनों देशों के रिश्ते और जटिल हो गए."
इस साल अप्रैल में बैंकॉक में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार प्रोफ़ेसर यूनुस के बीच हुई बैठक में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी.
इसके अलावा, पिछले एक साल में दोनों पड़ोसी देशों के बीच आर्थिक और वाणिज्यिक संबंधों में कई बदलाव आए हैं. पिछले एक साल में, भारत और बांग्लादेश ने एक-दूसरे पर कई व्यापारिक प्रतिबंध भी लगाए हैं.
भारत ने बांग्लादेशी नागरिकों के लिए वीज़ा नियम भी कड़े कर दिए हैं. ख़ास तौर पर, शेख़ हसीना के सत्ता से हटने के बाद पर्यटक वीज़ा जारी करना निलंबित कर दिया गया है.
बहुत कम बांग्लादेशियों को सिर्फ़ इलाज के लिए भारत वीज़ा दे रहा है.
पहले लगभग 20 लाख बांग्लादेशी हर साल इलाज, शिक्षा, व्यापार और पर्यटन जैसे कई उद्देश्यों के साथ भारत जाते थे.
पहले की तुलना में अब वीज़ा स्वीकार करने की दर में 80 फ़ीसदी से अधिक की कमी आई है.
पिछले साल दिसंबर में अगरतला में बांग्लादेश सहायक उच्चायोग कार्यालय पर हुए हमले के बाद भी काफ़ी नाराज़गी देखी गई थी.
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सत्ता से बेदख़ल होने से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने जुलाई 2024 की शुरुआत में चीन का दौरा किया था. तख़्तापलट के बाद अंतरिम सरकार के सत्ता में आने के बाद प्रमुख सलाहकार प्रोफ़ेसर मोहम्मद यूनुस ने जिस देश की अपनी पहली राजकीय यात्रा मार्च में की, वह चीन की थी.
उस यात्रा के दौरान बांग्लादेश में चीनी निवेश, नदी प्रबंधन और रोहिंग्या संकट जैसे कई मुद्दों पर चर्चा हुई और दोनों देशों के बीच कई समझौतों और ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए.
बातचीत के दौरान चीन ने कहा कि वह मोंगला बंदरगाह के विकास पर काम करेगा. अतीत में चीन और भारत इस परियोजना को अमली जामा पहनाने कोशिश करते रहे हैं.
विश्लेषकों का मानना है कि चीन अब अकेले पूरा काम कर सकता है.
इलाज के लिए चीन का रुख़
भारत की यात्रा के लिए वीज़ा से जुड़ी मुश्किलें पैदा होने की वजह से चीन अब बांग्लादेशी मरीज़ों के लिए एक नया केंद्र बनने का प्रयास कर रहा है.
चीनी सरकार ने कुनमिंग में चार अस्पतालों को बांग्लादेशियों के इलाज के लिए तय कर किया है.
बांग्लादेश के साथ संबंध सुधारने के लिए चीन के कई क़दमों में बांग्लादेशी राजनेताओं, पत्रकारों और विभिन्न व्यवसायों के लोगों को देश की यात्रा पर ले जाना भी शामिल है.
इसके तहत चीन ने पिछले साल बीएनपी, जमात-ए-इस्लामी, एनसीपी और वामपंथी संगठनों के नेताओं को अपने देश की यात्रा पर बुलाया है.
दूसरे शब्दों में कहें तो चीन ने बांग्लादेश और भारत के बीच राजनयिक संबंधों की कमी का फ़ायदा उठाया है.
प्रोफ़ेसर साहब इनाम ख़ान ने बीबीसी बांग्ला को बताया, "चीन के लिए बांग्लादेश का महत्व पहले भी उतना ही था जितना अब है. हालांकि, भारत पर निर्भरता कम होने के कारण चीन बांग्लादेश को विशेष महत्व दे रहा है. ऐसा लगता है कि चीन इस समय न केवल सरकार के साथ, बल्कि राजनीतिक दलों के साथ भी ख़ास रिश्ते बना रहा है."
विश्लेषकों के अनुसार, चीन बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को उसी स्तर पर ले जाना चाहता है, जिस स्तर पर हसीना के दौर में भारत-बांग्लादेश के रिश्ते थे.
साथ ही, बांग्लादेश भी चीन के साथ संबंधों को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, जिसे कुछ लोग प्रोफ़ेसर यूनुस सरकार की कूटनीतिक सफलता मानते हैं.
पाकिस्तान के साथ संबंधों में सुधारपाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच संबंध हमेशा से एक संवेदनशील मुद्दा रहा है. हालांकि, अवामी लीग के दौर में और ख़ासकर युद्ध अपराधों के मुक़दमों के दौरान, दोनों देशों के बीच संबंध तेज़ी से बिगड़ते चले गए.
हालांकि, शेख़ हसीना सरकार के पतन के बाद से जिस तरह भारत के साथ रिश्ते ठंडे पड़ गए हैं, उसी तरह पाकिस्तान के साथ मुश्किल रिश्तों पर जमी बर्फ़ पिघल गई है.
दोनों देशों के बीच अप्रैल में विदेश सचिव स्तर की औपचारिक बैठक भी हुई थी. डेढ़ दशक बाद हुई इस बैठक को इस्लामाबाद के साथ संबंधों को मज़बूत करने की एक दिशा के रूप में देखा जा रहा है.
बैठक में बांग्लादेश ने 1971 में पाकिस्तानी सशस्त्र बलों के बांग्लादेश के ख़िलाफ़ किए गए कथित नरसंहार के लिए पाकिस्तान से औपचारिक माफ़ी की मांग की, साथ ही तीन लंबित मुद्दों का समाधान करने की भी मांग की.
बीते साल जून में बीजिंग में हुई चीनी विदेश सचिव स्तरीय बैठक में बांग्लादेश और पाकिस्तान भी शामिल थे. इस दौरान एक त्रिपक्षीय गठबंधन बनाने पर चर्चा होने की ख़बरें थीं. हालांकि, बाद में विदेश मंत्रालय ने घोषणा की कि बांग्लादेश इस गठबंधन का हिस्सा नहीं होगा.
28 जुलाई को न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच हुई बैठक में द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने का संकल्प लिया.
देश में सत्ता बदलने के बाद पाकिस्तान ने बांग्लादेश के साथ संबंधों को मज़बूत करने के प्रयास किए हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय संबंध विश्लेषक इसे 'सजावटी' मानते हैं.
प्रोफ़ेसर साहब इनाम ख़ान ने बीबीसी बांग्ला को बताया, "बांग्लादेश के साथ पाकिस्तान के रिश्ते बहुत ही बयानबाज़ी भरे हैं. भविष्य में शायद बांग्लादेश-पाकिस्तान संबंधों को व्यावसायिक पहलुओं से फ़ायदा हो सकता है."
हालांकि, उनका यह भी कहना है कि बांग्लादेश की विदेश नीति के मुताबिक़, दुनिया के किसी भी देश के साथ सामान्य राजनयिक संबंध बनाए रखना महत्वपूर्ण है.
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अगस्त 2024 में जब बांग्लादेश में शेख़ हसीना सरकार गिरी, तब अमेरिका में जो बाइडन सत्ता में थे.
अवामी लीग सरकार के दौरान, तत्कालीन बाइडन प्रशासन ने बांग्लादेश में लोकतंत्र और मानवाधिकार के मुद्दों पर कड़ा रुख़ अपनाया था.
उस समय लोकतंत्र और चुनाव के मुद्दों पर अमेरिका और बांग्लादेश के बीच तनाव ज़ाहिर हो गया था, जिसकी शुरुआत दिसंबर 2021 में कथित मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए अर्धसैनिक बल आरएबी (रैपिड एक्शन बटालियन) पर अमेरिकी प्रतिबंध लगाने के साथ हुई थी.
बाद में 25 मई 2023 को अमेरिका ने बांग्लादेश के लिए वीज़ा नीति की घोषणा की, जिससे तत्कालीन शेख़ हसीना सरकार दबाव में आ गई.
उस समय शेख़ हसीना और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों ने अमेरिका की कड़ी आलोचना की थी.
शेख़ हसीना सरकार के पतन के ठीक एक महीने बाद, बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार प्रोफ़ेसर मोहम्मद यूनुस ने अमेरिका का दौरा किया.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की प्रोफ़ेसर यूनुस के साथ बैठक के बाद, व्हाइट हाउस ने बांग्लादेश के नए सुधार कार्यक्रम के लिए "लगातार अमेरिकी समर्थन" का भी वादा किया था.
उस समय प्रोफ़ेसर यूनुस के बांग्लादेश में सत्ता संभालने पर अमेरिका समेत पश्चिमी देशों से उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली थी.
हालांकि, इस साल जनवरी में डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद से बांग्लादेश के उसके साथ संबंध हाल के दिनों में और अधिक जटिल हो गए हैं. इसमें भी ख़ासकर अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले बांग्लादेशी उत्पादों पर टैरिफ़ की घोषणा के बाद से.
हालांकि, पूर्व राजदूत हुमायूं कबीर के मुताबिक़, ट्रंप प्रशासन का निर्णय बांग्लादेश के साथ राजनयिक संबंधों का प्रतिबिंब नहीं है.
कबीर ने बीबीसी को बताया, "ट्रंप प्रशासन ने बांग्लादेश सहित दुनिया भर के अलग-अलग देशों पर टैरिफ़ लगाए हैं. हम वहां चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. हालांकि, आशंका है कि इससे न केवल बांग्लादेश, बल्कि कई अन्य देश भी प्रभावित होंगे."
संयुक्त राष्ट्र के फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग मिशन ने पिछले वर्ष जुलाई और अगस्त में बांग्लादेश में कोटा सुधार की मांग को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों और उसके बाद सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन के दौरान हुई हत्याओं पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है.
हालांकि संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट ने सत्ता से हटाई गई अवामी लीग पर दबाव डाला है, लेकिन कूटनीतिक विश्लेषक इसे प्रोफ़ेसर यूनुस की कूटनीतिक सफलता बता रहे हैं.
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