सऊदी अरब और क़तर के बाद शुक्रवार को संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की यात्रा के साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का खाड़ी देशों का दौरा समाप्त हो गया.
दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए खाड़ी देशों को चुना, इसलिए भी यह दौरा काफ़ी सुर्ख़ियों में रहा.
ट्रंप ने दावा किया कि उनकी इस यात्रा में 'खरबों डॉलर के निवेश और सौदों' पर समझौते हुए.
दिलचस्प है कि डोनाल्ड ट्रंप अपने इस दौरे में, मध्य पूर्व में अमेरिका के सबसे क़रीबी रणनीतिक सहयोगी इसराइल नहीं गए.
लेकिन उनकी यात्रा में सबसे बड़ा क़दम सीरिया से प्रतिबंध हटाने का रहा, जहां असद सरकार के तख़्तापलट के बाद इस्लामिक स्टेट के पूर्व सहयोगी रहे अहमद अल' शरा अंतरिम राष्ट्रपति बने हुए हैं.

ट्रंप के दौरे की शुरुआत बीते मंगलवार को सऊदी अरब से हुई जहां उन्होंने 142 अरब डॉलर के रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए.
दौरे के दूसरे पड़ाव क़तर में उन्होंने 1.2 ट्रिलियन डॉलर के कई अहम सौदों पर हस्ताक्षर किए.
ट्रंप ने गुरुवार 15 मई को मध्य पूर्व में सबसे बड़े अमेरिकी सैन्य अड्डे अल उदैद एयरबेस (क़तर) का भी दौरा किया और घोषणा की कि क़तर इस अड्डे में 10 अरब डॉलर का निवेश करेगा.
यहां अमेरिकी सैनिकों को संबोधित करते हुए ट्रंप ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उनकी प्राथमिकता "संघर्षों को ख़त्म करना है, उन्हें भड़काना नहीं."
शुक्रवार, 16 मई को संयुक्त अरब अमीरात में ट्रंप का स्वागत करते हुए राष्ट्रपति मोहम्मद बिन ज़ाएद अल नाहयान ने घोषणा की कि उनका देश अगले 10 वर्षों में अमेरिका में 1.4 ट्रिलियन डॉलर का निवेश करेगा.
एआई के क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले सेमीकंडक्टर चिप्स तक यूएई की पहुंच को आसान बनाने के लिए भी एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए.
अबू धाबी की अपनी यात्रा के दौरान ट्रंप ने कहा कि अमेरिका ग़ज़ा में स्थिति को 'संभालने' की कोशिश कर रहा है. उन्होंने कहा कि घेराबंदी वाले फ़लस्तीनी क्षेत्र के बहुत से लोग 'भूख से मर रहे हैं.'
उन्होंने कहा, "हम ग़ज़ा के मुद्दे का अध्ययन कर रहे हैं और इसे सुलझाने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे."
व्हाइट हाउस ने सऊदी अरब के साथ हुए समझौते के बारे में कहा है कि पांच क्षेत्रों में सहयोग और निवेश पर सहमति बनी है.
इनमें हैं, वायु सेना और स्पेस टेक्नोलॉजी का विकास, एयर और मिसाइल डिफ़ेंस सिस्टम, समुद्री और तटीय सुरक्षा, सीमा सुरक्षा और सुरक्षा बलों का आधुनिकीकरण और सूचना और संचार प्रणालियों का आधुनिकीकरण.
इस पैकेज में सऊदी अरब की सैन्य क्षमता बढ़ाने के लिए व्यापक ट्रेनिंग और सहायता सेवाएं भी शामिल हैं, जिसके तहत सऊदी अरब की सैन्य एकेडमी और सैन्य स्वास्थ्य प्रणालियों का उन्नत बनाना शामिल है.
सऊदी अरब ने अमेरिका में 600 अरब डॉलर का निवेश करने का भी वादा किया है और पूरे अमेरिका में एआई डेटा सेंटरों के लिए 20 अरब डॉलर के निवेश की योजना बनाई है.
जबकि अमेरिकी टेक कंपनियों ने दोनों देशों में इस्तेमाल के लिए अत्याधुनिक परिवर्तनकारी टेक्नोलॉजी के विकास के लिए 80 अरब डॉलर के निवेश का वादा किया है.
समझौते के तहत इसके साथ ही अमेरिका 14.2 अरब डॉलर के गैस टर्बाइन और एनर्जी सॉल्यूशन और 4.8 अरब डॉलर के बोइंग 737-8 यात्री विमानों का निर्यात करेगा.
हथियार सौदे के अलावा जो अन्य सहयोग समझौते हुए हैं उनमें ऊर्जा के क्षेत्र में एमओयू हुआ है. साथ ही लगभग 100 अरब डॉलर के अमेरिकी हथियार खरीदने का इंटेंट ऑफ़ लेटर, खनिज संसाधनों के क्षेत्र में एमओयू, यूएस डिपार्टमेंट ऑफ़ जस्टिस के साथ सहयोग समझौता और अंतरिक्ष अनुसंधान और संक्रामक रोगों से निपटने में साझेदारी के समझौते शामिल हैं.
हालांकि ये समझौते बाध्यकारी नहीं हैं लेकिन इससे इस बात का संकेत मिलता है कि दोनों देश रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इन क्षेत्रों में मिलकर काम करना चाहते हैं.
इन समझौतों से इतर, अमेरिकी राष्ट्रपति ने मध्य पूर्व की राजनीति पर असर रखने वाले अन्य मुद्दों पर भी अपने रुख़ को स्पष्ट करने की कोशिश की.
उन्होंने कहा कि अमेरिका ईरान के साथ समझौता करना चाहता है, "अगर मैं ईरान के साथ समझौता कर सकूं, तो मुझे बहुत खुशी होगी."
ये कहते हुए उन्होंने तेहरान पर इस क्षेत्र को तबाह करने और विदेशों में ख़ून-ख़राबे के लिए आर्थिक मदद देने का आरोप लगाया.
हालांकि उन्होंने कहा कि वह 'ईरान के नेताओं द्वारा अतीत में पैदा की गई अराजकता की निंदा करने' के लिए नहीं आए हैं, बल्कि उन्हें 'अधिक आशाजनक भविष्य' की ओर 'एक नया और बेहतर मार्ग' सुझाने आए हैं.
उन्होंने कहा कि अगर ईरानी नेतृत्व इस 'शांति प्रस्ताव' को अस्वीकार कर देता है और 'अपने पड़ोसियों पर हमला करना जारी रखता है' तो उसके पास अधिकतम दबाव डालने और ईरान के तेल निर्यात को पूरी तरह रोक देने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा.
लेकिन ट्रंप ने जो सबसे अहम घोषणा की वह थी सीरिया से प्रतिबंध हटाना.
इसका एलान करते हुए उन्होंने कहा, "प्रतिबंध महत्वपूर्ण कार्य करते हैं लेकिन अब समय आ गया है कि सीरिया आगे बढ़े."
ट्रंप ने मध्य पूर्व के सबसे अहम ग़ज़ा मुद्दे को उठाया और कहा, "ग़ज़ा के लोग बेहतर भविष्य के हक़दार हैं, लेकिन ऐसा तब तक नहीं होगा जब तक उसके नेता निर्दोष लोगों को निशाना बनाना, उनका अपहरण करना और उन पर अत्याचार करना जारी रखेंगे."
ट्रंप ने फ़रवरी में कहा था, "अमेरिका ग़ज़ा पट्टी पर कब्ज़ा कर लेगा."
अमेरिकी राष्ट्रपति अपनी पहली विदेश यात्रा कहां करेंगे, यह एक बड़ा निर्णय होता है और इसे अक्सर उनकी विदेश नीति प्राथमिकताओं का संकेत माना जाता है.
अपने दोनों कार्यकालों में डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपतियों के पहले कनाडा, मैक्सिको या यूरोप का दौरा करने की परंपरा को तोड़ा है.
ट्रंप ने राष्ट्रपति के रूप में पहले कार्यकाल के दौरान सऊदी अरब की अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा की थी.
व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान, ट्रंप ने 13-16 मई के बीच फिर से खाड़ी देशों का दौरा किया.
खाड़ी मामलों के विशेषज्ञ ओमानी शोधकर्ता प्रोफ़ेसर अब्दुल्ला बाबूद के अनुसार, "ट्रंप खाड़ी नेताओं के साथ मज़बूत संबंध बनाने को अहमियत देते हैं, क्योंकि उनका क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव है और अमेरिका में बड़े निवेश करने और महत्वपूर्ण राजनीतिक और आर्थिक लाभ पहुंचाने की उनकी क्षमता है."
जब ट्रंप ने मार्च में अपनी यात्रा की योजना की घोषणा की थी, तो उन्होंने साफ़ किया था कि धनी अरब देशों के साथ आर्थिक समझौते करना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता रहेगी.
ट्रंप ने कहा, "उन्होंने इन देशों की यात्रा का फ़ैसला इसलिए लिया क्योंकि इन देशों ने अमेरिकी कंपनियों को सऊदी अरब और मध्य पूर्व की अन्य जगहों पर उपकरण बनाने के लिए सैकड़ों अरब डॉलर के सौदे का वादा किया था."
प्रोफ़ेसर बाबूद कहते हैं, "अपने वित्तीय भंडार, वेल्थ फ़ंड और विशाल निवेश क्षमता के कारण खाड़ी देश वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं."
ट्रंप घरेलू आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए धनी खाड़ी देशों के साथ संबंधों में लाभ देखते हैं.
ट्रंप ने 2017 में 450 अरब डॉलर से अधिक के सौदों का दावा किया था, जिनमें 110 अरब डॉलर के सैन्य उपकरणों की बिक्री भी शामिल थी.
वॉशिंगटन स्थित विश्लेषक हसन मनीमनेह का कहना है कि ट्रंप अपनी यात्राओं से हुए 'लाभ' को दिखाना चाहते हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति चाहते हैं कि ये प्रमुख निवेश वादे, विशेषकर सैन्य समझौते, जल्द से जल्द पूरे किए जाएं.
इस तरह, वह इन्हें अन्य देशों के साथ अपनी व्यापार नीतियों की सफलता के सबूत के रूप में दिखा सकते हैं.

सऊदी अरब ने अमेरिका, रूस और यूक्रेन के बीच महत्वपूर्ण मध्यस्थ की भूमिका निभाई है.
फ़रवरी में रियाद में अमेरिका और रूस के बीच एक उच्च स्तरीय बैठक में यूक्रेन में युद्ध ख़त्म करने पर चर्चा हुई.
यह 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद पहली बैठक थी और इसने मॉस्को को अलग-थलग करने के पश्चिमी कोशिशों के अंत का संकेत दिया.
मार्च में सऊदी अरब ने यूक्रेन में युद्ध विराम पर चर्चा करने के लिए तीन अलग-अलग देशों के प्रतिनिधिमंडलों की मेज़बानी भी की थी.
जेद्दा में अमेरिका-यूक्रेन वार्ता, फ़रवरी में ट्रंप और यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की के बीच ओवल ऑफिस में हुई तनावपूर्ण बैठक के बाद पहली वार्ता थी.
सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात दोनों ही रूसी और यूक्रेनी युद्धबंदियों के आदान-प्रदान के लिए समझौते पर पहुंचने में सफल रहे हैं.
प्रोफ़ेसर बाबूद ने कहा कि खाड़ी देशों के पास 'क्षेत्रीय और वैश्विक संकटों में उनकी भूमिका, उनकी वित्तीय शक्ति और उनके विशाल तेल और गैस भंडार के कारण महत्वपूर्ण आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव है.'
चीन और अन्य अमेरिकी प्रतिद्वंद्वी देश खाड़ी देशों के सामरिक महत्व को पहचानते हैं और इसलिए वॉशिंगटन अपने क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ मज़बूत संबंध बनाए रखने का इच्छुक है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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