राजस्थान के जोधपुर जिले से एक सनसनीखेज मामला सामने आया है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के एक इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर और कांस्टेबल पर एक मार्बल कारोबारी से 30 लाख रुपये की रंगदारी मांगने और पैसे न देने पर उसे एनडीपीएस में फंसाने और अपहरण करने का आरोप लगा है। इस मामले की जांच अब केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) करेगी। हाईकोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने एनसीबी इंस्पेक्टर खीयाराम, सब इंस्पेक्टर भगवान सहाय मीना और कांस्टेबल भागीरथ के खिलाफ मामला दर्ज किया है। वहीं कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई एसपी खुद इसकी जांच करेंगे।
जानिए क्या है पूरा मामला?
21 जून 2022 को मार्बल कारोबारी कुलदीप पंवार ने जोधपुर के चौपासनी हाउसिंग बोर्ड थाने में एनसीबी के तीन अफसरों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। कुलदीप ने आरोप लगाया था कि इन अफसरों ने उनसे और उनके भाई से, जो मार्बल और ग्रेनाइट का कारोबार करते हैं, 30 लाख रुपये मांगे थे। जब उन्होंने पैसे देने से मना कर दिया तो अधिकारियों ने उन्हें नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट के तहत फर्जी मामले में फंसाने की धमकी दी। साथ ही अपहरण की धमकी भी दी। इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 365 (अपहरण), 384 (जबरन वसूली), 389 (धमकी देकर जबरन वसूली) और 34 (सामान्य इरादा) के तहत मामला दर्ज किया।
एनसीबी का जवाबी आरोप
दूसरी ओर, एनसीबी अधिकारियों ने दावा किया कि वे एक गुप्त सूचना पर काम कर रहे थे। उनके मुताबिक, सुमेर सिंह नाम का एक व्यक्ति जोधपुर में अशोक उद्यान के पास 8-10 किलो अफीम की सप्लाई करने जा रहा था। अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने इस ऑपरेशन के लिए सभी जरूरी प्रशासनिक अनुमति ले ली थी। उन्होंने उल्टा आरोप लगाया कि राज्य पुलिस के कुछ अधिकारी असली अपराधी को बचाने की कोशिश कर रहे हैं और ड्रग माफिया से उनकी मिलीभगत है। एनसीबी ने इस मामले में राज्य पुलिस के हेड कांस्टेबल पुना राम और अन्य के खिलाफ क्रॉस केस दर्ज किया था।
हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया
मामला पुलिस थानों से राजस्थान हाईकोर्ट तक पहुंचा। जस्टिस फरजंद अली की अध्यक्षता वाली समन्वय पीठ ने 10 मई 2024 को आदेश दिया कि राज्य पुलिस और केंद्रीय एजेंसी के बीच टकराव को देखते हुए वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी के नेतृत्व में जांच टीम गठित की जाए। कोर्ट ने थाना स्तर की जांच पर रोक लगाते हुए फाइल पुलिस मुख्यालय जयपुर भेजने के निर्देश दिए। हालांकि अगली सुनवाई में कोर्ट ने नाराजगी जताई कि आदेश का पालन नहीं हुआ और जांच की स्थिति स्पष्ट नहीं है। कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश होने के आदेश दिए।
जांच सीबीआई को सौंपी गई
26 जुलाई 2024 को जस्टिस अरुण मोंगा ने मामले की सुनवाई की। उन्होंने कहा कि दोनों जांच एजेंसियों (एनसीबी और राज्य पुलिस) के बीच टकराव के चलते मामले की निष्पक्ष जांच के लिए सीबीआई को सौंप दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने दोनों पक्षों की शिकायतों को प्रारंभिक जांच के लिए सीबीआई जोधपुर भेज दिया। सीबीआई ने जांच शुरू की और पाया कि एनसीबी ने इस मामले में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की है। जांच में एनसीबी अधिकारियों के खिलाफ जबरन वसूली, धमकी और आपराधिक साजिश के सबूत मिले थे। इसके बाद सीबीआई ने तीनों अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
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